________________
प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आयुर्वेदीय अज्ञात जैन रचना) : ५१ अहणिक्केवल चुण्णे उण्हय णीरेण पीय माणेण । सत्त दिणा कम पत्थं फोहय गुम्माइं फेडेइ ।। २५३।। वंझामूलं रयणी पीठा थण लेवि पीड णासेइ । लहु इंदाइणि जड अह घण लेविय तंजि अवहरइ ।। २५४।। हरडइ वाति समं जलि तेण सुणीरेण पक्खालिज्जा । लिंगे वाहि पसामइ भासिज्जइ जोयसारे हिं ।। २५५।। हरिवालेणय रयियं पुव्व विज्जेहिं जं जि णिद्दिढे । वुहयण तं महु खमियहु हीणहियो जं जि कव्वोय ।। २५६।। विक्कम णरवइ काले तेरसय गयाइं एयाले। सिय पोसट्ठमि मंदो विज्जय सत्थो य पुण्णोया ।। २५७।।
इति पराकृत (प्राकृत) वैधकं समाप्तम्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org