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________________ प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आयुर्वेदीय अज्ञात जैन रचना) : ४९ विलवंतं कंजीए सीणा वद्धाइं उवरि उवरगुणा । अरणीपत्त स कंजी तह विह वद्धाई मलचयए ।। २२७।। पेट्ठमजा घय पक्वा पेटे वद्धाइं वेयणा हरइ । उण्हीकय वव्वरिया अह वद्धा सव्व मल णासं ।। २२८।। णेगडि तुलसी किंवा सिंगूदल इगिगि कंजिए तत्ता । अहवा दिणयरपत्रा सिंधवभरि उण्ह मलणासा ।। २२९।। विणिपलं जवखारं कंजिय कुटाइ अट्ठ जव उवरो। वर्तणय मल बंधं णासेइ जहा मुणी रोसो।।२३०।। णियाजमोय सउंफा वय उवक्कुं चाय छण वीयाय। आमल खाय हरीतय सूठि सउंफाय कणय खारोय ।। २३१।। किण्हजडा हयगंधा चित्त जमणीय पुष्करं मूलं । तेवइ साजी कुटुं सूरण सिंधं च जवखारं ।। २३२।। उवहि कमल विड लवणं पडिकरिसो सह विडंग सारं च । दाडिम णिसोय छहयं चउ संकर करस किय चुण्णं ।। २३३।। तक्क समाणय पाणं सव्वो उवराई णासयं लेइ । सतपण्णी रस गुलमे मलगहि दहिएहि अहव मंडीहि ।। २३४।। दाडिम रसदुन्नामा अज्जिणे उण्ह जल पाणो। सासो जाइ भंयंदरु पंडुरोयं च खासगल रोयं ।। २३५।। वायजरं हिदरोयं गहणी कुट्ठाई सव्व विसहरइ । पीवंतहं अणवरयं णामं गाराय चुण्णोय ।। २३६।। सिंधु रजमाइणि रजमोय ३ कण४ सुंठी५ इमग वट्टीअ। पण२ हजय१२ जलउण्हो पहणइ गुम्म मल सूल मंदग्गी।। २३७।। पंचपला स च मुंडी णीरोयल असिय सेस दस कत्थं । वीस तइल एचि सुद्धं पाणेलेवेण घणथणाहोहिं ।। २३८।। चंदणु सीर पयंगो वडरुह धाइ य कुमुय महु जडीय । पउमकुसुम सहकयली तंदुल जलि पयरु णासेइ ।। २३९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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