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४८ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
जाठिम रोध कयत्थं दाडिम तज वीय तंदुला तोए। पीयंतो विवि णासइ अइसारो वाय पित्तेसु ।। २१४।। पाढ वया जा विवुहा कुटुं कुडउवि उण्ह तोएण। पाणेणय णिण्णासइ कफस्सं अइसारठ णिच्वं ।। २१५।। रोधं जाठिम उप्पल सक्कर महु दुद्ध छाय सह पीए । णिस्संदेहो फेडइ रत्तलई पित्त अइसारो।। २१६।। कुडंउ अइविसु धादई सुरजव रस अंजणोवि विस्साय । तंदुल जल महुपाणे पित्त अइसारउ जाइ।। २१७।। अभया इंदिणि पुष्कर दारु णिसा वास सारु किम मारो। सिंधु ज गुरिच धमासा अपमग्गे णायकेसरं चित्तं ।। २१८।। विस्सा शिंव वराही गुडउ जमाणीयं कंट कारीय। सम अटुं संपीयं दशमूलं कुसुरकं णासं ।। २१९।। अभय२ कडू१ कणमूलं१ रेणुव४ चित्तं५ कमेण वट्टीय। भक्खंता उवराई गुम्मा फोहाय कुसरकं हणइं।। २२० ।। सक्कर णिसुय पलेक्कं उण्हजले पियवि पुणुवि तं णीरं। अह तिहला उण्ह जले पाणेण विरोयणं होइ ।।२२१।। सेहडि सत्तं भावेवि किण्ह गुली खद्धरेइ जइ अहेयं। दइ हिंगं वियटकं दहिर्ड णय भोयणं पच्छा।। २२२।। णिहुणग पएग भाविवि पूंगफला तवोलयं खद्धा। दिणि दिणि होइ विरोउ उप्परजुत्ती अकारिज्जा।।२२३।। उण्ह जले हयगंधा तयटकं देह भत्त पयभोज। अह चउ टंकं कुटुं रेयइ जदिवद्ध कोट्ठोवि ।। २२४।। सुरतरु सेंधव कुटुं धाणी हिंगं च पलुप लंघीयं । वारह जव इग तइलं कजिय पक्वेण खट्टेणा।। २२५।। तत्तं उवरिं वद्धं विसम मलं सूल वाइयं हरइ। कुट्ठी सूल विणासइ इमो सहो देवदाराहं ।। २२६ ।।
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