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प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आयुर्वेदीय अज्ञात जैन रचना) : ४७ सव्व समं तवीरं पुणु सव्य समाय खंड मेलेह । वालू णय वेयणियं वलं च पुटुिं च बंधेइ ।।२०।। किंवदला आमलया पाणिय पिट्ठाई मोयया करह । णिव्वाही णिण्णासइ खज्जतो रोय महिएण ।। २०१।। ढेढसजडमहु सहिया रत्ती सारर्ड पणासेइ । चउलहणे वडरोहा तं केणिय हणइ अइसारो ।। २०२।। इंदजव दुद्ध वेलं विस्सा अइविसु कत्थ चउ भेयं । अइसारं सहमूलं रत्तपवाहं च फेडेइ ।। २०३।। हरडइ दाडिम पाढा तित्तिडिया उण्ह तोय जुत्ताय । तं चुण्णं पीविज्जइ सूलो अइसार उवसमइ ।।२०४।। णागर अइ विसु केण्हा वुद मिरिया हिंगु सम बलं पाढं। पीएणय अइसारं पक्वामस्स विणासेइ ।। २०५।। मोथ कडू पप्पडर्ड भूणिवो छिणजाय सह कसिउ । पाणेणय णिण्णासइ पित्तं अइसार ताउंय ।। २०६।। अरलूसा पलवीसं खोटिवि वडपण्ण सूत महिसिंगु। वेढिव पुडिरंसु लिज्जइ तं महु सहिउँवि भक्खिज्जा ।। २०७।। रत्तलर्ड अइसारो अवरेहु सत्झहुंति अइसारा । ते सव्वेवि पणासइ अरलू छल्ली पसेएण ।। २०८।। अरलू महिसीगोमय वेढिवि पचिउवि तंदुला णीरे । वहिवि महुससभक्खय णासइ रत्तं अखंडोवि।। २०९।। मोथ कुडय सम महुणा सह गुलिया करि तंदुल जले पीयं। रत्तं अखंड मोडा अइसारं लहुक्खयं लेइ ।। २१०।। मोडिव दल वर भुन्निवि ठेकरए पिसिव वास जलपीयं । तइ दिण करं व भायं जीरे सह मोडयं हरए ।। २१२।। वुद अइविसु भारंगी दारु णिसा सोंठि वय समाकढ़ियं । महु अवलेहे णासइ कफ वाय भवोवि अइसारो।। २१३।।
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