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________________ प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आयुर्वेदीय अज्ञात जैन रचना) : ३५ इंदफलं घयदुद्धं च... उणं पंचंग पउम पल पंच। तक्कं घय पीयं पिय पित्तहरं वलयरं होइ ।। ४८।। लहुकंटि कायजंघा दुद्धी नाली सुनाली य। एककय मूल चुण्णं दंते धरि घुणवता हरए ।। ४९।। चरणंगुलि णहलेवे लंगलिमूलं च हणइ धुणवंता। अहवा थोहरिमूलं मुहि धरिया तंजि अवहरइ ।। ५० ।। पुप्फर तरु गिघणह सोठी अभया य उण्ह तोयेण । लन्हं करेवि चुण्णं पाणे सोक्खं पयासेइ ।।५१।। सुरदाली फलवीयं हलदरसेण पयहं तं चुण्णं । तह तेलेण य णासोविसूकं कंठं णिवारेइ ।। ५२ ।। गुल सुंठी एक्केकं वंधय गुलिया य अचलभव सोक्खं। खासं सास हिलूकी वाइय वंधं विणासेइ ।। ५३ ।। हरडइ कडुव वलाठ्ठ पप्पडउ दक्ख कढिय किरवालो। सह पिय दाहं पित्तं तिस भव सोक्खं पलाएइ ।।५४।। जाइह लेणय सत्तं सिय जल लिविय मुह छाय णासेइ। कलयरउ तह किण्हा सरसिम वट्टिउव पेरगुणा ।। ५५।। वरणेभुय अहदुद्धे मलिया मुंह कालिया गमई। अह चंदणु सपियंगू घुसिणु वयरिवीय तं हणइ ।। ५६।। सत्त दिणे पिसिपीयं गोमुत्रे इंदवारुणी मूलं। णासेइ गंडमाला अहसेय रायसिणि तोयेण।। ५७।। लिहस्साडय तरुछल्ली अट्ठासेसाय पीयमाणेण। गंडमालाय णासइ अहवा फुट्टी अफुट्टीय ।। ५८ ।। अह तयभायं मिरियाविज्जं भायं च जामेणी पीसे । तेले सहा पलेवो णिहणइं गंडायमालाय ।। ५९।। तंदुलजल सहाबंझा खीरे सह भक्खियंत । णिम्भंतं सप्पिखया संजुत्तं गंडमाला पणासेइ ।।६० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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