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________________ प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आयुर्वेदीय अज्ञात जैन रचना) : ३३ चित्तय तिहल पडोला जव कत्थ मज्झि सोठि कर सोवि । पीवह पाडल फुल्लं वण रत्तछि दोस फेडेइ ।। २२।। महुलट्ठि लोहु तिहला महुगुल सहिया विगुलय भर केह । गलकणदंतपीडा हणइ भयं दरुवि णयण रुजा ।।२३।। सिंधवहरडइधात्ती गेरु समभाय चउरि (४) जलपिट्ठा । पिडिय वाधय दोसो णासइ णयणस्स सव्वरुया ।। २४।। अमरी मोत्थ पडोला भूणेव धमासउ जवा सोय । तिहला सणिव छल्ली पप्पडउ कत्थयं पिवह ।। २५।। हर ड ऐ ... रंड मूलं छायल रवीरेण सुहम पीसेह । चक्खू सूलं बद्धं णयणस्स गासेइ ।। २६।। फे..ड..इ... मलवायं पित्तय फोडाय सन्निवायो य । वेसप्पीवि विणासइ इमो सहोमच्चलं... ।।२७।। महु सक्कर सह पीया वासामूलं च कढिय चउभायं । णासइ रत्तपित्तं पंडुरोयणाणि चैव ।। २८ ।। तिवडू चित्तं तिहला गंठीयं लोहतक्क सहपीयं । तक्षी पाणे जुत्तं पंडुरोयं समोसरइ ।। २९।। सहु तक्कर वडउत्ती दक्ख छुहारायं खद्धमहुलत्तं । अह दक्ख सुंठि हिंगं अहवा समपीय पंडुरुय हणइ ।। ३० ।। एल कण तज ति टंके चउरो विस्साय मिरिय वेटकं । दहि सक्कर संजुत्तं चुण्णं पित्तं पणासेइ ।।३१।। सरिसम उसीर धत्ती णियंवछल्लीय कत्थपीएण । रत्तं पित्त पणासइ कुट्ठ विणासो तहा चेव ।। ३२।। हरडइ वालउ धादइ कत्थं कढिऊण चउत्थ भाएणा । सक्कर सहियं पीयं सोणियपित्तं णिवारेइ ।।३३।। पत्था वासउ दक्खा कत्थससित्ताय रत्तपित्तहरो । गुलमिरिया दहि पीय रसपित्तयं च णासेइ ।।३४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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