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३२ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
तइ लेण भिणघत्त्थं सुरदारो जालिठं जि भरणेण । णासेइ सूल अवरं सिपि सिमियं कण्णिजं होई ।।१२।। कउई तूंबडी पाणी भरि धरियई दिन सात पछइ । पाणी की बूंद कानि घालियइ कानु दूखता भला होइ ।। रामठ सुंठी तुंवरु पडिकारिस सोलेम सुपलं णीरं । चउपल सेसं पचियं पिकसा रुय णासं ।।१३।। वसुजट्ठी अडवाह जलपल कढियावि सेसवत्ती... । खलु गुण तइल पलुविकसी रत्तंगी पविय कणरुय णासं ।।१४।। मक्कवरस कइवाइं ... यि रवीरोवि तेल सम पंच । सेरयलोहल्लजहे पचिवो सुद्धोउ दुइ लेह ।।१५।। पासे रंतह कुट्ठचुणं मिलिऊण सीसभरणेण । तिमिरासणं चाक्खुरुया सयल णासेह ।।१६।। अपमग्गमूल सिंधव मोत्थ सह घिसह तंत्तपत्रेण । वहु चक्खु तत्थ भरिए पसमइ जह हुव वहुतोएण ।।१७।। सोहिंजण पत्तरसो महुणा सह नेडछिया हुंति । अहसिय कणयर दल रसि अंजिय नयणाई उवसमहिं ।।१८।। कोखंडचंदनु टं१ सैंधव टं२ हरडइ टं३ पलास का गुंदु टं४एते चूर्णं कृत्वा लोचननि पूरयेतपटलव्याधिनासयति।। निजकर्णमल मधुसमेत आंख आंजियइ रात्रिअंध नासयति । तरु लग्गां आवलहल सज्जरसे णावि णयण पूरेह । जह तिमिरं सूरेणय तह तिमिरातिदोस पंजाइ ।।१९।।
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तिहलारसेण घसिया बंझा सहियावि काचसो हेइ ।।२०।। रत्तंदणुवि कुभारीलोयाणमल पुष्फ णासणं कुणइ । वंझाजलेणघसिया पडवालं च फेडेइ ।।२१।।
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