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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
दिन दिन महिमा दीपतो रे, जिम उदयाचले भांण रे।
तास पक्ष पंडितबरु रे, पुण्यमंदिर मुनिराय रे, विनइ तेहना वीनवे रे, उदयमंदिर धरी साय रे। रास रच्यो खंते करीरे, सेरवाटपुर मांहि रे, नरनारी जे सांभले रे, तस होई अधिक उछाहि रे।
शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० ४८. संवत सोल पंचाणुआ वरसि, आषाढ़ सुदि हरसि जी, श्री अंचलगछि विराजि, श्रीकल्याणसागर सूरिराजिजी।
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वाचकवंस विभूषण वारु श्री देवसागर भवतारु जी तास सीस मनि भावि उत्तमचंद गुण गावि जी।
शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० ४७. संवत सोल संताणुइ पोस पुनिय दिनसार रे, चरित्र ओह रचिउ मनरंगे रायधनपुर मझारि रे।
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पण्डित गुणचंद्र वंदता पामीजे उछाह रे, सुगुरु अह तणे सुपसाये, भाख्यो जे अधिकार रे। विवेकचंद्र कहे भावे सुणता लहइ लाभ अपार रे। सुणी चरित्र दीजे दान जे कीजे अतिथिसंविभाग रे। शीतिकण्ठ मिश्र, वही, भाग २, पृ० ४८७. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४०८. अंचलगच्छि श्रीधर्ममूर्तिसूरि सूरिसिरोमणि दीपइ, तस पाटि श्रीकल्याणसागर सूरि मयण महाभद्र जीपइ रे। संवत षट रस वाण (काय) निशाकर, कातिक वदि सोमवारि, पांचमि जोडि करी ओ रूडी, श्री भुज नगर मझारि रे। वाचक वंश सुहाकर मुणिवर, श्री विजयशील मुणिंद,
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