SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास :१५१ तास सीस दयाशील पयंपइ वंदु इला मुनि चंद रे। इलाची मुनि ना गुण गांता, पातिक दूरि पलाइ, श्री चिंतामणि पास प्रसादिइं ऋद्धि वृद्धि थिर थाइ रे। इलाचीकेवलीरास की प्रशस्ति, शीतिकण्ठ मिश्र, वही, भाग २, पृ० २१६-१७. मुनि दयाशील द्वारा रची गयी शीलबत्तीसी (रचनाकाल वि० सं० १६६४/ ई०स० १६०८), चन्द्रसेन-प्रद्योत नाटकीयप्रबन्ध (रचनाकाल वि० सं० १६६७/ई० स० १६११) आदि कृतियां भी मिलती हैं। सोलह सय उगणोत्तरइ पुर जालोर मझारि, आसु सुदि दशमइं कियउ, कथाबंध गुरुवारि। ८४. श्री अंचलगच्छ उदधि समान, संघरयण केरउ अहिठाण। उदयउतास श्रीगुरु कल्याणसागर सम गुणनांण, तासपक्षि महिमाभंडार, पंडित भीमरतन अणगार। तास विनेय विनयगुणगेह, उदयसमुद्र सुगुरु ससनेह, ताससीस आणंदिइ घणइं, दयासागर वाचक.... इम भणइ। मदनराजर्षिरास की प्रशस्ति, शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ०२१७-१९. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय परिवर्धित संस्करण, सम्पा०- डॉ० जयन्तकोठारी, भाग ३, पृ० ९७-९९. वाचक दयासागरगणि ने मदनराजर्षिचरित की रचना अपने गुरुभाई देवविधान के आग्रह पर की थी। अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४०९-१० अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४०८, ४१०. शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० २३६-३७. मुनिपुण्यविजय, “एक ग्रन्थनी प्रशस्ति' जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १२, अंक २, टाइटिल पृ० २. ८७. द्रष्टव्य, इसी निबन्ध के प्रारम्भ में दी गयी अंचलगच्छीय आचार्यों की पट्टपरम्परा ८८-८९.लघुपट्टावली, पृ० १५६-५७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy