SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६. विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास : १४९ ६१. जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृ० १८९-९०. ६२-६३. वही ६४. अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, “जसकीर्तिकृत सम्मेतशिखरास का सार" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ७, अंक १०-११, पृष्ठ ५१७, ५४८. आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग ३, हिन्दी विभाग, पृ० ५७-६५. जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, नवीन संस्करण, पृ० ३०१-३०६. ज्ञानमूर्ति द्वारा रचित बाइसपरीषहचौपाई, संग्रहणीबालावबोध, प्रियंकरचौपाई आदि कृतियां भी मिलती हैं। अंचलगच्छे दिन दिन दीपे, श्रीधर्ममूरति सूरिराया। तास तणे पखे महीयल विचरें, भानुलब्धि उवझाया रे। ताससीस मेघराज पयपे चिरनंदो जा चंदा रे। ओ पूजा जे भणसे बाणसे, तस घर होइ अणंदा रे। जैनगर्जरकविओ, भाग ३, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा० डॉ० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८७ ई०, पृ० १६४-६५. हिन्दीजैनसाहित्यकाइतिहास (मरु-गूर्जर), भाग २, पृ० ३६५-६६. ६७. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३९१. ६८-६९-७०. भंवरलाल नाहटा, “राजसीरास का सार', आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग ३, हिन्दी विभाग, पृ० ४-१०. ७१. लघुपट्टावली, पृ० १२६. ७२. वही, पृ० १३९. ७३. अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक २८७-३०८; ७६६-७७८. ७४. लघुपट्टावली, पृ० १४३. ७५-७६.वि० सं० १६७६ का वर्धमान शाह का लेख अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ३१०. ७७. लघुपट्टावली, पृ० १४३ और आगे मुनि महोदयसागर, कल्याणसागरसूरि का जीवनचरित, पृ० १७०-७३. ७९. संवत् सोल पंच्योतरे रे, कारतिक मास मझारि रे, सुद तेरस अति उजली रे, सोम सुतन भलोवार रे। विधिपक्ष गछ गुरु राजीओ रे, सोहे निर्मल नाण रे, ७८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy