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________________ जैन दर्शन में सृष्टि की अवधारणा : १०७ जैन दर्शन में लोकाकाश की कल्पना पुरुषाकार रूप में की गयी है। इसे मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है— अधोलोक, मध्यलोक और उर्ध्वलोक इस पुरुषाकार लोक के सबसे निचले भाग में बीस-बीस हजार योजन मोटा तनुवातवलय, घनवातवलय और घनोदधिवातवलय नामक सतह है उसके ऊपर कमर प्रमाण निगोद तथा महातमप्रभा, तमप्रभा, धूमप्रभा, पंकप्रभा, बलुकाप्रभा, शर्कराप्रभा तथा रत्नप्रभा नामक सात नरकभूमियाँ स्थित हैं। यह अधोलोक है। इसकी मोटाई सात रज्जु प्रमाण है। मध्य लोक एक रज्जु प्रमाण मोटा है। जैन मान्यतानुसार इस मध्य लोक में स्थित हमारी पृथ्वी के बीचोबीच सुमेरु नामक पर्वत है। इसकी ऊँचाई एक लाख योजन ( चार कोस - एक योजन) है। सुमेरु जितना ऊँचा और एक रज्जु लम्बा (पं० माधवाचार्य के अनुसार १००० किलो भार का गोला इन्द्रलोक से नीचे गिरकर छ: माह में जितनी दूर पहुँचे वह लम्बाई एक रज्जु है।) तथा इतना ही चौड़ा मध्यलोक है। यह लोक सुमेरु के चारों ओर व्याप्त है । इस मध्यलोक के बहुमध्य भाग में पैंतालीस लाख योजन विस्तार वाला अतिगोल मनुष्य लोक है । २६ मनुष्यलोक के बीचोबीच जम्बूद्वीप है । इसका विस्तार एक लाख योजन है। २७ इस जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरत, हैमवत, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत् तथा ऐरावत् - ये सात क्षेत्र हैं । २८ इनमें से भरत क्षेत्र में हम निवास करते हैं। मनुष्यलोक के अलावा मध्यलोक में तिर्यक्लोक तथा चौरासी लाख जीवों का भी अवस्थान है। - इसके ऊपर विमानलोक अवस्थित है इसमें सबसे नीचे १६ कल्प विमान हैं। जिनमें रहने वाले देवता कल्पवासी कहलाते हैं। जैनाचार्यों ने विमानलोक को कल्प और कल्पातीत दो भागों में बाँटा है। कल्प विमान के ऊपर ज्योतिर्लोक है जहाँ सूर्य, चन्द्र, तारा, ग्रह आदि का निवास है । इसके ऊपर समुद्रस्थ, भवनपुरों तथा पर्वतस्थ आवासों में निवास करने वाले व्यन्तर जाति के आठ प्रकार के देव - किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत एवं पिशाच २९ निवास करते हैं। इसे व्यन्तरलोक कहा गया है। जैनों के इन व्यन्तर देवताओं की तुलना पुराणों के अन्तरिक्षचारी, गन्धर्व, अप्सरा, भूत, पिशाच, नाग, अश्विनी, मरुद्गण आदि अनिकेत देवताओं से की जा सकती है । ३० इसके अतिरिक्त भवनपति देवताओं का निवास भवनलोक है जो ऊर्ध्वलोक में न होकर मध्यलोक में पृथ्वीतल के निचले भाग में अवस्थित है। इनमें असुर, नाग, विद्युत, सुपर्ण, अग्नि, वायु, स्तनिक, उदधि, दिक् तथा द्वीप कुमार नामक दस प्रकार के देवता निवास करते हैं । ३१ पुराणवर्णित अतल, पितल आदि सात पाताललोकों में रहने वाले दैत्य, दानव, यक्ष, नाग आदि से इनकी तुलना की जा सकती है । ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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