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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ सिद्धिविजय जी की शिष्य सन्तति आगे चली। सिद्धिविजय जी की परम्परा के वर्तमान आचार्य श्रीमद्भद्रंकर विजय जी हैं। इनकी निश्रा में कुल साधु-साध्वियों की संख्या ४११ है।
बुद्धिविजयजी के एक अन्य गुरुभ्राता पद्मविजय, जिनका ऊपर उल्लेख आ चुका है, के शिष्य प्रेमविजय और प्रेमविजय के शिष्य एवं पट्टधर जितविजय जी हुए। इनके बारे में कोई विशेष विवरण नहीं मिलता। जितविजय जी की शिष्य सन्तति में आगे चलकर कौन-कौन से मुनिजन हुए। इनकी परम्परा आगे चली अथवा नहीं! इस बारे में साक्ष्यों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है।
बुद्धिविजय जी अपरनाम बूटेराय जी की विशाल शिष्यसन्तति में तीन नाम उल्लेखनीय हैं, ये हैं- मुक्तिविजय जी, वृद्धिविजय जी और आत्माराम जी अपरनाम विजयानंद सूरि जी। इन तीनों मुनिजनों की शिष्य सन्तति आज भी विद्यमान है।
मुक्तिविजय जी का जन्म वि० सं० १८८६ में हुआ था, वि० सं० १९०२ में इन्होंने स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षा ली। वि० सं० १९१२ में अहमदाबाद में इन्होंने मणिविजय जी (दादा) के पास संवेगी शिक्षा ग्रहण की। ये बहुत अनुशासन प्रिय थे। इनके समय में अनेक साधु-साध्वियों की दीक्षायें हुई और सम्प्रदाय का विस्तार हुआ। वि० सं० १९४५ मार्गशीर्ष वदि ६ को भावनगर में इनका निधन हुआ।
मुक्तिविजय जी के पट्टधर विजयकमल सूरि हुए। वि० सं० १९१३ में इनका जन्म हुआ। वि० सं० १९३६ में वृद्धिचन्द जी के पास इन्होंने दीक्षा ग्रहण की
और मक्तिविजय जी के शिष्य घोषित किये गये । वि० सं० १९४७ में इन्हें पंन्यास पद और वि० सं० १९७३ में अहमदाबाद में आचार्य पद प्राप्त हुआ। वि० सं० १९७४ आश्विन सुदि १० को सूरत में ये स्वर्गवासी हुए।
विजयकमल सूरि के पट्टधर विजयकेसर सूरि हुए । वि० सं० १९३३ में पालिताना में इनका जन्म हुआ था, वि० सं० १९५० में बड़ोदरा में विजयकमल सूरि के पास इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १९६३ में गणि पद और वि० सं० १९८३ में आचार्य पद प्राप्त किया। वि० सं० १९८६ में अहमदाबाद में इनकी मृत्यु हुई। ये योगविद्या के अभ्यासी थे। इनके द्वारा रची गयी कुछ कृतियां भी मिलती हैं३२॥
विजयकमल सूरि के एक शिष्य विनयविजय हुए। पालिताना स्थित गुरुकुल के स्थापक चारित्रविजय जी इन्हीं के शिष्य थे। चारित्रविजय जी के दो शिष्य दर्शनविजय जी और ज्ञानविजय जी हए। दर्शनविजय जी के शिष्य न्यायविजय जी हुए। ये तीनों त्रिपुटी महाराज के नाम से विख्यात हुए।३। इनके द्वारा लिखी गयी कृतियों में जैनतीर्थोनो इतिहास, जैन परम्परानो इतिहास भाग १-४ आदि उल्लेखनीय हैं।
विजयकमल सूरि के एक अन्य शिष्य विजयमोहन सूरि हुए। विजयमोहन
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