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तपागच्छ विजयसंविग्न शाखा का इतिहास सुरसन्दरीरास की प्रशस्ति में उन्होंने जो गुर्वावली दी है, वह इस प्रकार है -
हीरविजयसूरि
विजयसेनसूरि
विजयदेवसूरि
सत्यविजय गणि
कपूरविजय
क्षमाविजय
जसविजय
शुभविजय
वीरविजय (रचनाकार) जिनविजय गणि के निधन के पश्चात् उनके शिष्य उत्तमविजय पट्टधर बने। इनका जन्म वि० सं० १७६० में हुआ था, वि० सं० १७७८ में खरतरगच्छीय देवचन्द्र गणि के पास इन्होंने विद्याध्ययन किया और वि० सं० १७९६ में जिनविजय गणि से दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १७९९ में गुरु के निधन के पश्चात् उनके पट्टधर बने और वि० सं० १८२७ में अहमदाबाद में इनकी मृत्यु हुई२०। इनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं
१. जिनविजयनिर्वाणरास (रचनाकाल वि० सं० १७९९) २. संयमश्रेणीगर्भित महावीरस्तवन (रचनकाल वि० सं० १७९९) ३. महावीरस्तवन (रचनाकाल वि० सं० १८०९) ४. अष्टप्रकारी पूजा ( रचनाकाल वि० सं० १८१३-१९) ५. शत्रुजयतीर्थस्तवन ( वि० सं० १८२७) ६. श्राद्धविधिवृत्तिबालावबोध (वि० सं० १८२४)
उत्तमविजय गणि के निधन के पश्चात् इनके शिष्य पद्मविजय गणि पट्टधर बने । वि० सं० १७९२ में इनका जन्म हुआ था, वि० सं० १८०५ में इन्होंने दीक्षा