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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ ४. शुभवेलि - रचनाकाल वि० सं० १८६० (इस कृति में रचनाकार ने अपने गुरु शुभविजय का जीवनवृत्तांत वर्णित किया है।) ५. स्थूलिभद्रजीनी शियलबेल - रचनाकाल वि० सं० १८६२ ६. दर्शाणभद्रनी सज्झाय - रचनाकाल वि० सं० १८६३ ७. कुणिकराजगर्भिति वीरस्तवन - रचनाकाल वि० सं० १८६४ ८. त्रिकचातुर्मास देववंदनविधि - रचनाकाल वि० सं० १८६५ ९. अक्षयनिधि तप स्तवन - रचनाकाल वि० सं० १८७१ १०. चौसठ प्रकारीपूजा - रचनाकाल वि० सं० १८७४ ११. पिस्तालीसआगमगर्भित अष्टप्रकारीपूजा - वि० सं० १८८१ १२. नवाणुंप्रकारी पूजा - रचनाकाल वि० सं० १८८४ १३. बारव्रतनीपूजा - रचनाकाल वि० सं० १८८७ १४. भायखला (मुंबापुरीस्य) ऋषभचैत्यस्तवन - रचनाकाल वि० सं० १८८८ १५. पंचकल्याणकपूजा - रचनाकाल वि० सं० १८८९ १६. अंजनशलाकास्तवन - रचनाकाल वि० सं० १८९३
(अपरनाम मोतीशानां ढालियां) १७. धम्मिलकुमाररास - रचनाकाल वि० सं० १८९६ १८. हिताशिखामणस्वाध्याय - रचनाकाल वि० सं० १८९८ १९. चन्द्रशेखररास - रचनाकाल वि० सं० १९०२ २०. हठीसिंहनी अंजनशलाकाना ढालियां-रचनाकाल वि० सं० १९०३ २१. सिद्धाचल गिरनारस्तवन - रचनाकाल वि० सं० १९०५ २२. संघवण हरकुंवरसिद्धक्षेत्रस्तवन- रचनाकाल वि० सं० १९०८ २३. नेमिनाथराजीमतीरास २४. हितशिक्षाछत्रीसी २५. छप्पनदिक्कुमारीरास २६. प्रश्नोत्तरचिन्तामणि
इसके अलावा इनके द्वारा रचित छोटी-बड़ी ८३ स्तवनों, सज्झायों, गहुंलियों आदि का भी उल्लेख मिलता है१८१ वि० सं० १९०९ माघ सुदि६ सोमवार को इनका निधन हुआ। इनके शिष्य रंगविजय हुए, जिन्होंने वि० सं० १९११ चैत्र सुदि १५ सोमवार को श्रीवीरविजयनिर्वाणरास की रचना की। यह कृति मुनिजिनविजयजी द्वारा संपादित जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय के पृष्ठ ८६-१०५ पर प्रकाशित है। इसी ग्रन्थ के पृष्ठ ३६-४२ पर उन्होंने उक्त रास का सार भी प्रकाशित किया है।
वीरविजय ने अपनी विभिन्न कृतियों में अपनी लम्बी गुरु-परम्परा दी है।
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