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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ का विधान किया। १७५६ में पाटण में इनका निधन हुआ। खरतरगच्छीय मुनि जिनहर्ष ने इनके ऊपर एक निर्वाणरास की रचना की है। इनके पट्टधर कपूरविजय हुए। वि० सं० १७०४ में इनका जन्म हुआ, वि० सं० १७२० में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि० सं० १७५७ में अपने गुरु के पट्टधर बने। सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों की गवाड़, बीकानेर में संरक्षित चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० १७६८ के एक लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप इनका नाम मिलता है। श्री अगरचन्द नाहटा एवं श्री भँवरलाल नाहटा ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है:
___ सं० १७६८ वै० सु० १५ दिने चा: अगर श्रीचन्द्रप्रभ बिंब कारितं तपागच्छे पं० कपूरविजयेन प्र०..............।
कपूरविजय द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती। वि० सं० १७५५ में पाटण में इनका निधन हुआ। कपूरविजय के एक शिष्य बुद्धिविजय हुए जिनके द्वारा रचित उपदेशमालाबालावबोध, चौबीसी, जीवविचारस्तवन आदि कृतियाँ मिलती हैं। कवि सुखसागर द्वारा रचित पं० श्रीवृद्धिविजयगणिनिर्वाणभास से इनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
कपूरविजय के पट्टधर उनके द्वितीय शिष्य क्षमाविजय हुए। इनके द्वारा रचित पार्श्वनाथस्तवन एवं शास्वताशास्वतजिनचैत्यवंदन नामक कृतियाँ प्राप्त होती हैं। वि० सं० १७८५ या १७८६ में अहमदाबाद में इनका स्वर्गवास हुआ।
क्षमाविजय के पट्टधर जिनविजय गणि हुए। इनका जन्म वि० सं० १७५२ में हुआ था। वि० सं० १७७० में क्षमाविजय से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १७८६ में ये गुरु के पट्टधर बने और ४७ वर्ष की अल्पायु में वि० सं० १७९९ में पादरा में इनका निधन हो गया'३। इनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं। जो निम्नानुसार हैं: १. ऋषभस्तवन २. पद्मप्रभस्तुति ३. शीतलजिनस्तवन ४. सुविधिजिनस्तवन ५. विमलजिनस्तवन ६. अरजिनस्तवन ७. नेमिनाथस्तवन ८. पार्श्वजिनवीनती ९. पार्श्वजिनस्तवन