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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ गोम्मटेश्वर बाहुबली एवं यक्ष तथा यक्षियों की मूर्तियां बनीं।
एलोरा की जैन मूर्तियों में तीर्थंकरों के वक्षस्थल में 'श्रीवत्स' के अंकन की परिपाटी उत्तर भारत के समान प्रचलित नहीं थी। समकालीन पूर्वी चालुक्यों की जैन मूर्तियों में भी यह चिन्ह नहीं मिलता। साथ ही अष्टमहाप्रतिहार्यों में से सभी का अंकन भी यहाँ नहीं हुआ है। केवल त्रिछत्र, अशोकवृक्ष, सिंहासन, प्रभामण्डल, चांवरधारी सेवक एवं मालाधरों का ही नियमित अंकन हुआ है। शासनदेवताओं में कुबेर या सर्वानुभूति यक्ष तथा चक्रेश्वरी, अंबिका एवं सिद्धायिका यक्षियाँ सर्वाधिक लोकप्रिय थीं। जिनों के साथ, यक्ष-यक्षियों का सिंहासन छोरों पर नियमित अंकन हुआ है।
संदर्भ (१) भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व महानिदेशक श्री जे० पी० जोशी के समाचार पत्रों में प्रकाशित १२ फरवरी १९९०ई० की सूचना के अनुसार एलोरा में २८ और गुफाओं की खोज की गई है। परन्तु १९९३ ई० में एलोरा की यात्रा में मुझे यह ज्ञात हुआ कि वहाँ कुछ अन्य गुफाएं अवश्य हैं, जिनमें सफाई के कार्य चल रहे हैं। अधिकांशत: गुफाओं में महेशमूर्तियां ही हैं। नई दृष्टि से विचारणीय होगा कि एलोरा में महेश सम्प्रदाय तो विकसित नहीं हो रहा था! १९९४ में पुनः यात्रा करने पर मैनें पाया कि एलोरा में ईसापूर्व दूसरी शती से पांचवी सदी ईस्वी तक के दो हजार साल पुराने एक प्राचीन शहर के अवशेष भी हैं।
आनन्दप्रकाश श्रीवास्तव, एलोरा की ब्राह्मण देव प्रतिमाएँ -इलाहाबाद १९८८ई०, पृ० २-३; एलोरा की शैव प्रतिमाएँ, नई दिल्ली, १९९३, पृ० १-१०. एलोरा गुफाओं के परिचय सूचना पट्ट से उद्धत । के० आर० श्रीनिवासन, टेम्पल्स आफ साउथ इडिया, नई दिल्ली, पृ०६४. कुमुदगिरि, जैन महापुराण : एक कलापरक अध्ययन, वाराणसी १९९५ई०, पृ० २५४. जी० याजदानी, दकन का प्राचीन इतिहास, दिल्ली १९६६ई०, पृ० ६०३. आनन्दप्रकाश श्रीवास्तव, एलोरा की ब्राह्मण देव प्रतिमाएं, पृ० ११.