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एलोरा की जैन सम्पदा तत्त्व ग्रहण के आधार पर जैन गुफाएं बौद्ध तथा ब्राह्मण गुफाओं से भिन्न हैं। प्रतिमा तथा प्रतिमा विज्ञान के आधार पर ही इनमें अन्तर देखा जा सकता है। इन्द्रसभा तथा जगन्नाथ सभा दुमंजिली हैं। एलोरा की इन गुफाओं में जैनों के सर्वोच्च आराध्य देव तीर्थंकरों (या जिनों) का अंकन हुआ है। २४ जिनों में से आदिनाथ (प्रथम), शांतिनाथ (१६वें), पार्श्वनाथ (२३वें) एवं महावीर (२४ वें) की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं साथ ही ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली गोम्मटेश्वर की भी कई मूर्तियाँ हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि दक्षिण भारत में गोम्मटेश्वर की मूर्तियाँ विशेष लोकप्रिय थीं और एलोरा में उनकी सर्वाधिक मूर्तियां बनीं। २४ तीर्थंकरों का सामूहिक अंकन भी उत्कीर्ण है। जिनों में सात सर्पफणों वाले पार्श्वनाथ की मूर्तियां सर्वाधिक लोकप्रिय थीं। एलोरा की जैन मूर्तियों में छत्र, सिंहासन, प्रभामण्डल जैसे प्रातिहार्यों, लान्छनों एवं शासन देवताओं का अंकन जिनसेन द्वारा रचित आदिपुराण (नवीं शती ई० के मध्य) एवं गुणभद्ररचित उत्तरपुराण (नवीं शती के अंत एवं दसवीं शती के प्रारम्भ) के विवरणों के अनुरूप हुआ है।
इन्द्रसभा एवं जगन्नाथ सभा सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों के सहायक अंक आपस में निकटस्थ अनावश्यक अलंकारिक विवरणों से लदे हैं कि इनकी संकलित जटिलता के प्रदर्शन से दर्शकों के नेत्र थक जाते हैं, उदाहरणार्थ इंद्रसभा के आंगन में ध्वजस्तंभ मंदिर के द्वार और केन्द्रीय मण्डप के इतने पास स्थित हैं कि सम्पूर्ण अंश जबरदस्ती टूंसा हुआ एवं जटिल दृष्टिगोचर होता है। आंगन के छोटे मापों एवं उसकी ओर उन्मुख कुछ कक्षों के स्तभों के छोटे आकार से उपर्युक्त प्रभाव और भी बढ़ जाता है। यद्यपि ये विलक्षणताएं मंदिर के संयोजन से अनुपात का अभाव प्रकट करती हैं। पर इनके स्थापत्यात्मक विवरण से पर्याप्त उद्यम एवं दक्षता का परिचय मिल जाता है। ऐसे उदाहरणों में कला मात्र कारीगरी रह जाती है, क्योंकि सृजनात्मक प्रयास का स्थान प्रभावोत्पादन की भावशून्य निष्प्राण चेष्टा ले लेती है। इन जैन गुफाओं में चार लक्षण उल्लेखनीय हैं। एक तो इनमें कुछ मंदिरों की योजना मंदिर समूह के रूप में हैं। दूसरी विशेषता स्तंभों में अधिकतर घटपल्लव एवं पर्यंक शैलियों आदि का प्रयोग करके समन्वय का सराहनीय प्रयास किया गया है। तीसरी विशेषता इनमें पूर्ववर्ती बौद्ध एवं ब्राह्मण गुफाओं जैसी विकास की कड़ी नहीं दिखाई देती। जैनियों के एलोरा आगमन के पूर्व सभी बौद्ध एवं ब्राह्मण गुफाएं बन चुकी थीं। अत: साधन, सुविधा एवम् समय के अनुसार इन्होंने कभी बौद्ध एवं कभी ब्राह्मण गुफाओं से प्रेरणा ली। चौथी विशेषता है कि इन गुफाओं में भिक्षुओं के आवास की व्यवस्था नहीं है। इस दृष्टि से ये ब्राह्मण गुफाओं के निकट हैं।
एलोरा की जैन गुफाओं का निर्माण अधिकतर राष्ट्रकूट नृपतियों के राज्यकाल में हुआ है। एलोरा की जैन मूर्तियाँ अधिकतर उन्नत उत्कीर्ण हैं। यहाँ तीर्थकरों,