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जैन विद्या के विकास के हेतु रचनात्मक कार्यक्रम कार्यकर्ताओं की रुचि एवं सहयोग
सबसे जरूरी बात यह है कि प्राथमिक से विश्वविद्यालय तक के सभी कार्यक्रमों में समाज के कार्यकर्ताओं की रुचि एवं सहयोग अपेक्षित है। शिक्षाविद् शैक्षणिक विषयों और कार्यक्रमों का संचालन कर सकते हैं पर संस्थाओं के व्यवस्थापकीय एवं वित्तीय कार्यक्रमों में समाज के प्रबुद्ध वर्ग का सहयोग नितान्त आवश्यक है। हमारे समाज का शिक्षित वर्ग विशेषतः, जिन्होंने वाणिज्य, कानून व अन्य तकनीकी विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त की है, का सहयोग एवं योगदान इन शिक्षण कार्यक्रमों को सफल बना सकेगा।
औपचारिक शिक्षा के अतिरिक्त हमारा समाज अनेक स्वाध्याय कार्यक्रमों, पाठशालाओं व ज्ञानालयों का भी संचालन करता है, जिनके द्वारा जैनत्व की शिक्षा दी जाती है। इनके कार्यक्रमों का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिये। इनका भी शिक्षण असाम्प्रदायिक ढंग से हो तथा इनमें आडियो-वीडियो का उपयोग किया जाये। श्रीमती अनुराधा पौडवाल की भक्तामर की कैसेट (वीडियो) बहुत लोकप्रिय हुई है। “बारह भावना" एवं “दश लक्षण धर्म" पर श्री हकमचन्द भारिल्ल की कैसेटें भारत एवं विदेशों में एक लाख से अधिक बिकी हैं। स्वाध्याय के इन कार्यक्रमों का पाठ्यक्रम सरल व सुबोध हो, इस सम्बन्ध में इन्दौर के डॉ० नेमिचन्द जैन ने जो जैन विद्या का पाठ्यक्रम बनाया है, वह बहुत ही उपयोगी और प्रभावोत्पादक है। अगर प्रत्येक भाई व बहन जैन विद्या के अध्ययन व प्रचार में सप्ताह में एक घंटा समय भी देवें तो हम सारे देश में जैन विद्या का प्रभावोत्पादक कार्यक्रम प्रस्तुत कर सकते हैं।