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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ अनुयायी अन्य धर्म-परम्पराओं की बातों से सर्वथा अनभिज्ञ नहीं रहे और उनके मन्तव्यों को गलत रूप में न समझे।" शिक्षण के क्षेत्र में कार्य
शिक्षण के क्षेत्र में आज हमारी अनेक संस्थाएं प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर कार्यरत हैं। लेकिन जैन समाज द्वारा संचालित एवं जैन नाम से चलने वाली संस्थाओं में भी जैन तत्त्व-ज्ञान व आदर्शों की पढ़ाई बहुत कम होती है। उनके कार्यों का मूल्यांकन करना आवश्यक है। आज हमें समन्वयात्मक कोर्स बनाने होंगे, जिनको जैन समाज के सभी वर्गों की मान्यता मिल सके। महावीर सेवा संघ, मुंबई ने फेडेरेशन आफ जैन एसोसिएसन्स इन नार्थ अमेरिका (जैना) के सहयोग से इसी प्रकार का एक कोर्स पांचवी कक्षा तक के छात्रों के लिए बनाया है, जो अनुकरणीय है। विदेशों में जैन विद्या का जो प्रचार हो रहा है, वह सम्प्रदायातीत एवं सार्वजनीन है। अन्य धर्मों वाले भी इनको अच्छी प्रकार से समझ सकते हैं। १२ वीं कक्षा तक का जो कोर्स बने उसमें नैतिक शिक्षा, अध्यात्म-ज्ञान, जैन इतिहास और परम्परा, प्राकृत भाषा व भजन के पाठ्यक्रम सम्मिलित होने चाहिये।
जहाँ तक स्नातकीय कोर्स का सम्बन्ध है सामान्यतया यह प्रश्न उठता है कि विद्यार्थी जैन तत्त्वज्ञान की पढ़ाई में रुचि नहीं लेते। इसके लिए ब्रिटेन के हमारे जैन बंधुओं ने डे मेंटो युनिवर्सिटी में एक बहुत ही सुन्दर स्नातकीय कोर्स विकसित किया है जिसे बी० ए० डिग्री कोर्स के साथ जोड़ दिया है। जो छात्र कामर्स, कानून, मैनेजमेन्ट, कॉम्प्यूटर, विज्ञान आदि का डिग्री कोर्स करते हैं, उनको साथ में जैन विद्या की पढ़ाई का भी लाभ मिलेगा। प्रथम वर्ष में निम्न दो विषय हैं:
१. भारतीय संस्कृति और जैन धर्म
२. जैन धर्म एवं दर्शन-भाग१ द्वितीय एवं तृतीय वर्ष में निम्न विषयों में से ४ विषय लेने होंगे -
१. जैन धर्म एवं दर्शन-भाग-२ २. इतिहास के परिपेक्ष्य में जैन समाज एवं संस्कृति ३. आधुनिक जैन समाज एवं संस्कृति ४. मुख्य जैन ग्रन्थों का अंग्रेजी अनुवाद ५. प्राकृत भाषा ६. वैकल्पिक विषय
इससे विद्यार्थी आर्टस, वाणिज्य व विज्ञान की डिग्री के साथ जैन धर्म का भी काफी ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।