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जैन विद्या के विकास के हेतु रचनात्मक कार्यक्रम "लन्भन्ति विमला भोए, लन्भन्ति सुर संपया।
लब्भन्ति पुत्त मित्तं च, एगो धम्मो न लब्भई" ।।
अर्थात् पृथ्वी के सभी सुखोपभोग उपलब्ध होना कठिन नहीं है, देवताओं के तुल्य संपत्ति प्राप्त होना भी कठिन नहीं है, आज्ञाकारी पुत्र व हितैषी मित्र मिलना भी कठिन नहीं है अर्थात् ये सब दुर्लभ नहीं हैं। केवल मात्र शुद्ध धर्म के मूल्यों की प्राप्ति होना दुर्लभ है। बिना धर्म की साधना के मनुष्य का जीवन व्यर्थ है, पशु तुल्य है। महर्षि भर्तृहरि ने कहा है
"येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं गुणो न धर्मः। ते मृत्युलोके भुवि भार भूता, मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति ।।"
अर्थात् जिनके पास न विद्या है, न तप है, न दान है, न ज्ञान है, न गुण है, न धर्म है, वे इस मृत्युलोक में पृथ्वी के भारभूत हैं और पशु होते हुए भी मनुष्य के रूप में विचरण करते हैं। आधुनिक ढंग से धर्म का प्रचार
विज्ञान व तकनीकी का आज जो विकास हो रहा है, उसके अनुसार हमें भी आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार जैन धर्म को प्रचारित करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज जैन धर्म के प्रति लोगों में बहुत जिज्ञासा बढ़ी है। साधु-संतों के पास भी बहुत बड़ी संख्या में भाई-बहन आते हैं। हमें जैन अध्यात्म को रुचिकर ढंग से समझाना होगा। जैन धर्म शाकाहार, सदाचार व शुद्धाचार की प्रेरणा देता है। भोजन की शद्धि से मन शुद्ध होता है और मन की भावना शुद्ध होने से मनुष्य गलत कर्म नहीं करता। आज दुनियाँ के अनेक देशों में शाकाहार का व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा है। वह इसलिए नहीं कि उनका धर्म उनको इसकी प्रेरणा देता है। पर आज के श्रेष्ठ चिकित्सक, वैज्ञानिक व पर्यावरणशास्त्री यह कहते हैं कि यह भोजन सुपाच्य है, शरीर को स्वस्थ बनाता है, शक्ति प्रदान करता है व मन को शान्त, प्रसन्न व प्रफुलित रखता है। आज अमेरिका में १ करोड २४ लाख लोग व ब्रिटेन में ३५ लाख लोग शाकाहार को अपना रहे हैं। पर्यावरण शास्त्री कत्लखानों को बंद कराने का प्रयत्न कर रहे हैं। भारत में श्रीमती मेनका गांधी ने तर्कपूर्ण ढंग से शाकाहार की गुणवत्ता को व्यक्त किया है। इसके बावजूद दुर्भाग्य से हमारे देश में मासांहार का प्रचलन बढ़ रहा है। यहाँ मांस, अंडे, मछली-मत्स्यों की खेती होती है। यान्त्रिक कत्लखाने बढ़ रहे हैं। यह एक ऐसी चुनौती है जिसका तुरन्त और संगठित ढंग से मुकाबला न करने पर हमारे देश का बुनियादी ढांचा ही ढह जायेगा। अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य
भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में प्राकृत व जैन विद्या के विभाग खुले हैं