SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ (Hiritage) डायरी' देखी। इसमें भगवान् बुद्ध, श्रीकृष्ण, बाल्मिकि, तुलसी, कबीर, विवेकानन्द, महर्षि रमण, महात्मा गांधी आदि की ३६५ सूक्तियां देखीं। लेकिन आश्चर्य है कि उसमें महावीर या किसी भी अन्य जैन महापुरुष की एक भी सूक्ति नहीं है। इसमें दोष उन लोगों का नहीं वरन् हमारा ही है जो हमने भगवान् महावीर के सिद्धान्तों को सरल ढंग से लोकप्रिय नहीं किया। आगम ज्ञान का सरल भाषा में प्रचार : जैनधर्म का मूल साहित्य प्राकृत भाषा में संगृहीत है। यह ज्ञान का अक्षय भण्डार है। जैन आगम साहित्य, जैन धर्म, दर्शन, आचार, संस्कृति तथा भारतीय जीवन विधा को समझने के मूल स्रोत हैं। स्व० उपाध्याय श्री अमर मुनिजी के शब्दों में, “जैन साहित्य का सूक्ति-भण्डार महासागर से भी गहरा है। उसमें एक से एक दिव्य असंख्य मणि-मुक्ताएँ छिपी पड़ी हैं। अध्यात्म और वैराग्य के लिए ही उपादेय नहीं, किन्तु पारिवारिक, सामाजिक आदि के विकास हेतु नीति, व्यवहार आदि के उत्कृष्ट सिद्धांत-वचन इनमें यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं।" (सूक्ति-त्रिवेणी पृष्ठ ११) लेकिन हमने आगम ग्रंथों को प्राचीन बहुमूल्य वस्तु (Antique) समझकर भण्डारों व पुस्तकालयों में रख दिया या वे मात्र साधु-सन्तों के लिए उपयोगी हैं, यह मान कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। यह स्थिति ठीक नहीं है। जिस प्रकार गीता प्रेस, गोरखपुर वालों ने गीता और रामायण आदि वैदिक ग्रन्थों की करोड़ों प्रतियां लागत से भी कम मूल्य में वितरित की हैं, वैसे ही हमें भी आगम की गाथाओं एवं सूक्तियों को सरल भाषा में विभिन्न भाषाओं में प्रचारित करना होगा। आज बाइबिल का अनुवाद दुनियाँ की सभी भाषाओं में हो चुका है तथा उसकी करोड़ों प्रतियां वितरित की जाती हैं। हरे कृष्ण आन्दोलन (ISCONE) को तो प्रारंभ हुए १०० वर्ष भी नहीं हुए हैं पर उसके एक करोड़ अनुयायी हैं जिन्होंने श्री प्रभुपाद द्वारा रचित गीता और भागवत की सुन्दर प्रतियाँ करोड़ों की संख्या में वितरित की हैं। हमें भी इसी प्रकार उत्तराध्यययन सूत्र, तत्त्वार्थसूत्र, आत्म-सिद्धि शास्त्र, भक्तामरस्त्रोत्र आदि को जन-जन में (जैनों एवं अजैनों में) लोकप्रिय करना होगा। हम लोगों ने भी बहुत साहित्य अनेक सम्प्रदायों में प्रकाशित किया है पर उन सब द्वारा जैन धर्म का लोक मंगलकारी सार्वजनीन स्वरूप लोगों तक नहीं पहुंचा है। भगवान् महावीर की वाणी में सारे विश्व की मानव जाति को एक सूत्र में गुम्फित करने की क्षमता है। धन के स्थान पर धर्म को महत्त्व वर्तमान जैन समाज ने धर्म को गौण व धन को जीवन में प्रधान स्थान दे दिया है, यह आज की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। धर्म जीवन में प्रमुख स्थान रखता है, यह हम कहते तो हैं पर उसे जीवन व्यवहार में नही लाते। भगवान् महावीर ने कहा
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy