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जैन विद्या के विकास के हेतु रचनात्मक कार्यक्रम श्राविकाओं ने धर्म को सही ढंग से समझा, व्रती जीवन जीया तथा दान, शील, तप और भावनारूपी धर्म उनके जीवन में मूर्त हुआ। तब जैन श्रावकों को “महाजन" "श्रेष्ठी” और “साहूकार" कहा जाता था। आचार्य हरिभद्र सूरि ने “धर्मबिन्दु” नामक अपने ग्रन्थ में गृहस्थों के लिए त्रिवर्ग की उपासना का विधान बताया है। त्रिवर्ग का अर्थ है धर्म, अर्थ और काम। “धर्म और काम को भले ही अन्य कोई परस्पर विरोधी मानते हों, किन्तु जिन वाणी के अनुसार यदि वे मर्यादापूर्वक व्यवहार में लाये जाते हैं, तो परस्पर अविरोधी हैं" (दश० नियुक्ति २६२) धर्म का असली स्वरूप
आज जैन धर्म के असली स्वरूप को बहुत कम लोग समझते हैं। जीवन को हम किस प्रकार आनन्दपूर्वक, तनावरहित व सौहार्दपूर्ण ढंग से जियें, यह जैन धर्म बतलाता है। लोग इसे निवृत्तिमूलक धर्म मानते हैं पर इसमें निवृत्ति और प्रवृत्ति का समन्वय है। भगवान् महावीर ने कहा कि प्रत्येक प्राणी में आत्मा है अत: उसके प्रति सम्मान की भावना रखनी चाहिए। जीव मात्र के प्रति आदर यह जैन धर्म का प्रथम सिद्धांत है। दूसरा सिद्धांत है सभी व्यक्तियों के प्रति समभाव रखना, किसी को ऊंचा या नीचा नहीं समझना। तीसरा सिद्धांत है कि हमारे विचारों में आग्रह की वृत्ति न हो। आचार में अहिंसा और विचारों में अनेकांत एक समता और सौहार्दमूलक समाज रचना में सहायक होते हैं। जैनशब्द का अर्थ ही जीतना है। जो अपने आपको जीतता है, अपनी आत्मा को जीतता है, कषायों पर विजय प्राप्त करता है, वही जैन कहलाने का अधिकारी है। आज विश्व में चारों ओर हिंसा और अशान्ति चरम सीमा पर पहुंच गई है। अमेरिका जैसे अति समृद्ध देश में हर ३० मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है तथा हर २० मिनट में एक व्यक्ति पागल हो जाता है। आर्थिक जीवन में जहाँ वहाँ समद्धि का अतिरेक है, वहीं व्यक्तिगत जीवन परेशान व त्रस्त है। बीयर और डीयर से उनकी दिनचर्या का आरम्भ होता है, मासांहार करना व रात को कैसिनों (नृत्य एवं जुआघर) देखना उनकी आदत पड़ गई है। पारिवारिक जीवन विनष्ट हो रहा है। वह वातावरण हमारे देश में भी फैलने वाला है। आज कल भारत में भी टी० वी० में जो कार्यक्रम आ रहे हैं वे व्यक्तिगत जीवन में हिंसा, शराब, पर-स्त्री गमन व चरित्रहीनता के दृश्य प्रदर्शित करते हैं एवं परिवार में विघटन की भावना दिखाते हैं। ऐसे समय में जैन धर्म के सात्विकता, प्रेम, भ्रातृभाव, दया व करुणा के विचारों का प्रचार करना बहुत बड़ी चुनौती का कार्य है। हेरिटेज डायरी
हाल ही में मैने अरविन्द आश्रम, पाण्डिचेरी द्वारा प्रकाशित एक “संस्कृति