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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ स्पर्श करने के लिये उसे रूढ़िवादिता अथवा लोकमूढ़ताओं अथवा समय-समय पर धर्म के नाम पर या धर्म की आड़ में समागत कुरीतियों/बुराइयों/विकृतियों को हटाने के लिये जो आन्दोलन किये जाते हैं वे धार्मिक आन्दोलन कहलाते हैं। समाज की अवहेलना करके न तो कोई धार्मिक आन्दोलन सफल हो सकते हैं और न ही धर्म की अवहेलना करके कोई सामाजिक आन्दोलन । अतः इतना निश्चित है कि दोनों परस्पर एक दूसरे पर आधारित हैं। कभी-कभी सामाजिक आन्दोलन धर्म की ओर इतने झुके हुये होते हैं कि लोग उन्हें धार्मिक आन्दोलन की ही संज्ञा देने लगते हैं और ऐसी स्थिति में सामाजिक और धार्मिक आन्दोलनों में भेद करना जनसामान्य के लिये मुश्किल हो जाता है। ___ जैन समाज प्राय: व्यापार से सम्बद्ध है। इस समाज में सामान्यत: चौरासी जातियों का समावेश है, जो जैनधर्म की शीतलछाया को प्राप्तकर उसके प्रमुख सिद्धान्त सम्यग्दर्शन के आठ अंगों में से एक अङ्ग वात्सल्यभाव के कारण एक दूसरे के इतने निकट आ गये हैं कि उनमें प्राय: रोटी-बेटी का व्यवहार होने लगा है। इतनी अधिक जातियों का जैनधर्म के प्रति विशेष रूप से श्रद्धालु होकर एक मंच पर उपस्थित होना वस्तत: गौरव की बात है, किन्तु सभी जातियों के अपने-अपने भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों एवं विचारों की विविधता के कारण परस्पर सामन्जस्य स्थापित करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। अत: अपने विचारों को मूर्तरूप देने हेत कुछ लोगों द्वारा जो प्रयत्न हुए वे जैन समाज में एक आन्दोलन के रूप में परिणत हो गये। ये आन्दोलन कभी समाज के विकास के नाम पर उभरे तो कभी धार्मिक कट्टरता के कारण। कभी-कभी सैद्धान्तिक मान्यताओं से नयदृष्टि की उपेक्षा कर किसी एक ओर झुकाव होने के कारण भी जैन समाज में आन्दोलन हुए हैं, जो विविध पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों, स्वतन्त्र टैक्ट्स, पुस्तकों अथवा व्याख्यानों आदि के माध्यम से प्रसारित हुए हैं। बीसवीं सदी के प्रमुख आन्दोलनों में हरिजन मन्दिर प्रवेश, दस्सापूजाधिकार, दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, शूद्र जल त्याग, विधवा विवाह, विजातीय विवाह, बाल विवाह, बाल दीक्षा, धार्मिक ग्रन्थों/शास्त्रों का मुद्रण, विलायत यात्रा, अंग्रेजी शिक्षा का ग्रहण, जिन-शासन देवी-देवाओं की पूजा, द्रव्यपूजा-भावपूजा, अरिहन्त प्रतिमा का अभिषेक , शाकाहार आन्दोलन आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त निमित्त-उपादान, निश्चय-व्यवहार, क्रमबद्ध पर्याय और अध्यात्मवाद पर खुली चर्चा भी इसी शताब्दी की देन है। नारी शिक्षा जैसा पवित्र आन्दोलन भी इसी क्रम में जुड़ा हुआ है। उपर्युक्त आन्दोलनों में से जिन आन्दोलनों के साथ पक्ष या विपक्ष में समर्थन या विरोध था उनमें विचारों की विविधता के कारण समाज में जहाँ एक ओर विघटन 3588६१
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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