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________________ बीसवीं सदी के धार्मिक आन्दोलन : एक समीक्षा डॉ० कमलेश कुमार जैन* मनुष्य एक विचारशील प्राणी है। वह जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक समस्या का समाधान सर्वप्रथम स्वत: करना चाहता है, किन्त जिन समस्याओं का सम्बन्ध व्यक्तिगत न होकर समाज से होता है उन्हें वह समाज के स्तर पर समाधान करने प्रयास करता है। अत: समाज अनेक व्यक्तियों का समूह है, अन्ततः 'मुण्डेमण्डे मतिर्भिन्ना' के अनुसार विचार-वैभिन्य स्वाभाविक है। किन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ लोग अपने-अपने छोटे-मोटे मतभेदों को गौण करके किसी एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर एक समान चिन्तन करते हैं और तदनुरूप उसका संगठित रूप में समाधान खोजने का प्रयास करते हैं। किसी विचारधारा से प्रेरित होकर उसे कार्यान्वित करने के लिये एक संगठित समूह-विशेष के लोगों से सभी का सहमत होना आवश्यक नहीं है। अत: उस समूह के विरोध में भी कुछ लोग खड़े हो जाते हैं और आगे चलकर सामान्य रूप से दो समूह बन जाते हैं, जो अपने-अपने पक्ष के समर्थन में विभिन्न प्रकार के तर्क प्रस्तुत कर अपने-अपने पक्ष की सिद्धि करते हैं। कभी-कभी समाज में अज्ञानता अथवा लोकमूढ़ता के कारण ऐसे रीतिरिवाज प्रारम्भ हो जाते हैं, जो बाद में अप्रिय और कट परिणाम वाले होने पर भी समाज में प्रचलित होने के कारण व्यवहार में करने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में कोई क्रान्तिकारी व्यक्ति आगे आता है; जिसे हम समाज सुधारक की संज्ञा देते हैं, वह उन रीति-रिवाजों का विरोध करता है। प्रबुद्ध समाज उसका सहयोग करती है और एक जन-आन्दोलन खड़ा हो जाता है, जो शनैः शनैः समाज में अपनी जड़ें जमा लेता है तथा समाज में व्याप्त कुरीतियों से सम्पूर्ण समाज को मुक्त कराने का प्रयास करता है। समाज और धर्म- ये दो भिन्न-भिन्न इकाइयाँ हैं। समाज का सम्बन्ध जन सामान्य से होता है और धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति विशेष से । किन्तु समाज और धर्म का केन्द्र बिन्दु अन्तत: व्यक्ति ही है। अत: ये दोनों पृथक-पृथक होते हुए भी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह समाज पर आश्रित हैं। अत: समाज की उन्नति के लिये अनेक सामूहिक कार्य करने पड़ते हैं और समाज की उन्नति अथवा उसके हित में किये गये ये सामूहिक कार्य ही सामाजिक आन्दोलन कहलाते हैं तथा धर्म की ऊँचाइयों का * प्रवक्ता, जैन दर्शन, जैन-बौद्ध दर्शन विभाग, प्राच्य विद्या धर्म विज्ञान संकाय, का० हि० वि० वि०, वाराणसी. -
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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