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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ १०६८ मणपरिणामो य कतो अभिणिक्खमणम्मि जिणवरिंदेणं। ३० देवेहि य देवीहि य समंतओ उव (?ग) यं गयणं ।। २६ यहाँ उत्तरार्द्ध में (ग) जोड़कर 'उवगयं' बना देने से अर्थ और छन्द पूर्ण हो जाते हैं। १०८४ एवं सदेवमणुयासुराए परिसाए परिवुडो भयवं । ३२ अभिथुव्वंतो गिराहिं मझमज्झेण सतवारं ।। २८ यहाँ द्वितीय चरण के 'ए' और 'डो' को लघु मात्रा माना गया है। १०८६ ईसाणाए दिसाए ओइण्णो उत्तमाओ सीयाओ। ३२ सयमेव कुणइ लोयं सक्को से पडिच्छई केसे ।।२८ यहाँ प्रथम चरण के अंतिम 'ए' और द्वितीय चरण के अंतिम गुरु को लघु मान कर छन्द पूरा किया जा सकता है। १०९० तिहिं नाणेहिं समग्गा तित्थयरा जाव होति गिहवासे।३२ पडिवण्णम्मि चरित्ते चउनाणी जाव छउमत्था।। २७ प्रस्तुत गाथा के प्रथम चरण के तृतीय बहुवचन रूप 'तिहिं नाणेहिं' को अनुस्वार रहित रूप कर देने से छन्द पूरा होता है। ११२८ भरहे१ य दीहदंते २ य गूढदंते ३ य सुद्धदंते ४ या २९ सिरिचंदे५ सिरिभूमी (ती) ६ सिरिसोमे ७ य सत्तमे ।। २४ यहाँ उत्तरार्द्ध १६ वर्णवाला है जबकि पूर्वार्द्ध १९ वर्ण का, जिसमें तीन य पादपूर्ति रूप में ही प्रतीत होता है। इसके पूर्व की ७ गाथाएं अनुष्टुप की हैं। ११४४ एते (य) नव निह (ही) तो पभूयधण-कणग रयणपडिपुण्णा। २८ अणुसमयमणुवयंती चक्कीणं सततकालं पि।।२६।। यहाँ प्रथमार्द्ध में (य) को पादपूरण में तथा 'निह' की जगह 'निहीं' रखने पर छन्द पूरा हो जाता है ११४८ कण्हा उ, जयंति (तs) जिए१-२ (भद्दे ३) सुप्पभ४ सुदंसणे५ चेव। २५ आणंदे ६ नंदणे ७ पउमे नाम ८ संकरिसणे ९ चेव ।। २८ यहाँ पूर्वार्द्ध में (भद्दे३) शामिल कर तथा उत्तरार्द्ध के चेव के चे की लघु गणना करने से छन्द पूर्ण होता है। ११५३ तेसीति लक्ख णव उ तिसहस्सा नव सता य पणनउया। २९ मासा सत्तऽद्धट्टमदिणा य धम्मो चउसमाए।। २७ यहाँ प्रथम चरण के अन्तिम 'उ' को दीर्घ कर दिया गया है।
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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