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________________ यहाँ सभी प्रतियों में तीन चरण अनुपलब्ध है। ९७२ सेसं तु बीयमेत्तं होही सव्वेसि जीवजातीणं । ३० कुणिमाहारा सव्वे निसा (स्सा) ए संझकालस्स । २५ यहाँ (स्सा) को सा के स्थान पर रखकर तथा अन्त लघु को गुरु कर छन्द पूरा किया जा सकता है। ९७७ ओसप्पिणीइमाए जो होही (? होहऽइ) दुस्समाए, अणुभावो । ३१ सो चेव (य) अणुभावो उस्सप्पिणिपट्टवणगम्मि ।। २६ प्रस्तुत गाथा के तृतीय चरण में (य) पादपूरण के लिए शामिल कर अन्त लघु किया गया है। को गुरु ९८० अवसप्पिणीए अद्धं अद्धं उस्सप्पिणीए तहिं (?) होइ । ३२ एयम्मि गते काले होहिंति उ पंच मेहा उ । । २६ यहाँ पूर्वार्द्ध के दोनों चरणों के ए को लघु किया गया। सणसत्तरसं धण्णं फलाई मूलाई सव्वरुक्खाणं । ३२ खजूर - दक्ख- दाडिम- फणसा तउसा य व ंति । । २६ यहाँ फलाई मूलाई को अनुस्वार रहित रूप करने से मात्रा पूर्ण होती है । १००५ पढमेत्थ विमलवाहन १ सुदाम२ संगम ३ सुपासनामे ४ य । २९ दत्ते५ सुनहे६ तसमं (? वसुमं) ७ इय (ते) सत्तेव निद्दिट्ठा ।। २५ प्रस्तुत गाथा के उत्तरार्द्ध में (ते) जोड़कर मात्रा पूर्ण की जा सकती है । उस्सप्पिणीइमीसे बितियाए समाए गंग - सिंधूणं । ३२ एत्थबहुमज्झदेसे उप्पण्णा कुलागरा सत्त ।। २६ यहाँ द्वितीय चरण के दोनों 'ए' की गणना लघु करने पर छन्द पूर्ण होता है । गामा (य) नगरभूया नगराणि य देवलोगसरिसाणि । २८ रायसमा य कुडुंबी, वेसमणसमा य रायाणो ।। २७ यहाँ प्रथम चरण का (य) पादपूर्ति के रूप में लेकर अन्त लघु को दीर्घ किया जाना चाहिए। १०५७. १००० छन्द की दृष्टि से तित्थोगाली प्रकीर्णक का पाठ निर्धारण . मेत्तीरहिया उ होहिंति ||१४ १००६ १०४५ सो देवपरिग्गहिओ तीसं वासाइं वसति गिहवासे । ३१ अम्मा- पितीहिं भगवं देवत्ति (?) गतेहिं पव्वइतो ।। २९ यहाँ उत्तरार्द्ध पितीहिं को अनुस्वार रहित और अन्त गुरु को लघु किया गया। ५६
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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