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________________ श्रमण / जनवरी-मार्च १९९९ अर्थसंगति के साथ छन्द पूर्ति हो गयी है । ९२६ तिहिं वासेहिं गतेहिं गएहिं मासेहि अद्धनवमेहिं । ३३ एवं परिहायंते दूसमकालो इमो जातो ।। २७ यहाँ पूर्वार्द्ध के प्रथम चरण के दोनों एकार को लघु तथा द्वितीय चरण के अन्त गुरु को लघु कर छन्द को पूरा किया गया है। ९२८ होही हाहाभूतो (य) दुक्खभूतो य पावभूतो य। २८ कालो अमाइपुत्तो गोधम्मसमो जणो पच्छा ।। २७ यहाँ द्वितीय चरण के प्रारम्भ में (य) को पादपूर्ति के लिए रखकर अन्त लघु को गुरु किया गया है। ९३६ होही सुसिरा भूमी पडतइंगालमुम्मुरसरिच्छा । ३० अग्गी हरियतणाणि य नवरं सो तीहि सोविही ( ? ) । २६ यहाँ चतुर्थ चरण में तृतीया बहुवचन रूप 'तीहि' को अनुस्वार युक्त कर छन्द पूर्ण किया जा सकता है। ९४९ म( ? भे) सुंडियरूवगुणा सव्वे तव - नियम- सोयपरिहीणा । २९ उक्कोसरयणिमित्ता मेत्तीरहिया य होहिंति ।। २६ यहाँ प्रथम चरण में 'भसुंडिय' की जगह भेसुंडिय करने से अर्थ और छन्द दोनों संगत हो जाते हैं। ९५१ इंगालमुम्मुरसमा (य) छारभूया भविस्सती धरणी । २९ कवल्लुगभूता तत्तायसजोइभूया य ।। २६ तत्त यहाँ द्वितीय चरण के प्रारम्भ में (य) पादपूरण अर्थ में शामिल किया जा सकता है। ९५२ धूली- रेणूबहुला ९६७ घणचिक्कणकद्दमाउला धरणी । ३० चकम (म्म) णे य असहा सव्वेसिं मणुयजातीणं ।। २६ यहाँ तृतीय चरण में 'चंकमणे' की जगह (म्म) जोड़कर चंकम्मणे करने से छन्द पूरा हुआ है। ९५५ नट्टग्गिहोमसक्कर (?) भोइणो सूरपक्कमंसासी । २९ अणुगंगसिंधु - पव्वयबिलवासी यहाँ (य) पादपूरण अर्थ में शामिल किया गया है। ५५ कूरकम्मा य । । २६
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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