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छन्द की दृष्टि से तित्थोगाली प्रकीर्णक का पाठ निर्धारण क्रम संगत है। इसमें तृतीय बहुवचन के रूपों सहस्सेहिं, सएहिं और नवहिं को अनुस्वार रहित रूप में कर देने से छन्द पूर्ण होता है। ८३६ धम्मो य जिणाणुमतो राया य जणस्स लोयमज्जाया।३०
ण (तो) ते हवंति खीणा जं सेसं तं निसामेह ।।२५
यहाँ उत्तरार्द्ध में (तो) को गाथा में शामिल करने से अर्थ पूर्ण होने के साथ छन्द भी पूर्ण हो जाता है। ८३७ सावगमिहुणं समणो समणी राया तहा अमच्चो य । २९
एते हवंति सेसं अण्णो (य) जणो बहुतरातो ।।२६ __यहाँ उत्तरार्द्ध में (य) पादपूरण में रखा गया है। ८४६ छट्ठ चउत्थं च तया होही उक्कोसयं तव्वोकम्म। ३१
(? दुप्पसहो आयरिओ) काही किर अट्ठमं भत्तं।।१५
यहाँ उत्तरार्द्ध में प्रथम चरण ही नहीं है। जिसकी जगह वहीं कोष्ठक के (दुप्पसहो आयरियो) को चरण मान लिया गया है। ८८१ गामा (य) नगरभूया, नगराणि य देवलोगसरिसाणि । २८
रायसमा य कुडुंबी, वेसमणसमा य रायाणो।।२७
यहाँ प्रथम चरण में (य) को गाथा में शामिल कर लेने पर अर्थ और छन्द दोनों पूर्ण हो जाता है। ८८५ भंग-त्तासविरहितो डमरुल्लोल-भय-डंडरहितो या २९
दुन्मिक्ख-ईति-तक्कर-करभर(य) विवज्जिओ लोगो।।२६
यहाँ चतुर्थ चरण में (य) को शामिल कर पाद पूर्ण किया गया है। ९०९ सीसा वि न पूइंती आयरिए दूसमाणुभावेणं। ३०
आयरिया (3) सुमणसा न देंति उवदेसरयणाई।।२६।।
यहाँ तृतीय चरण में (उ) पाद पूरण अर्थ में ग्रहण किया गया है। ९१२ सयणे निच्चविरुद्धो निसोहियसाहिवासमित्तेहिं (?)।२९
चंडो दुराणुयत्तो लज्जारहितो जणो जातो ।। २७
यहाँ पूर्वार्द्ध के द्वितीय चरण के अन्त में 'य' जोड़कर पादपूर्ति की जा सकती है। ९१४ सहपंसुकीलिय (?र) सा अणवरयं गरुयनेहपडिबद्धा। २९
मित्ता दरहसिएहिं लुन्भंति वयंसभज्जासु ।। २६ यहाँ प्रथम चरण में केवल 'सा' शब्द अर्थहीन है। 'रसा' कर देने पर