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छन्द की दृष्टि से तित्थोगाली प्रकीर्णक का पाठ निर्धारण के आधार पर ही रची गयी प्रतीत होती हैं। शेष १२२८ पद्य 'गाथा' छन्द में हैं। पर ये सभी मात्रा की दृष्टि से पूर्ण नहीं हैं। इनमें मात्र ५२१ गाथाएँ ही मात्रा की दृष्टि से पूर्ण हैं। अर्थात् इनके पूर्वार्द्ध में ३० मात्राएँ और उत्तरार्द्ध में २७ मात्राएँ हैं। शेष की ३८२ गाथाएँ ऐसी हैं जिनके पूर्वार्द्ध या उत्तरार्द्ध में एक मात्रा कम है, १०३ गाथाओं के पूर्वार्द्ध या उत्तरार्द्ध में एक मात्रा अधिक है, १५ गाथाओं के पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध दोनों में एक-एक मात्रा अधिक है, ७७ गाथाओं के दोनों अद्धालियों में एक-एक मात्रा कम है तथा ३२ गाथाओं के पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध में से एक में एक मात्रा कम तथा दूसरे में एक मात्रा अधिक है। इन गाथाओं में अन्तिम गण के अन्त लघु को गुरु कर या अन्त गुरु मात्रा को लघु कर छन्द की मात्रा पूरी कर ली गयी है। ऐसी कुल (३८२+१०३+१५+७७+३२) ६०९ गाथाएँ हैं। इस प्रकार (५२१+६०९) ११३० गाथाएं पूर्ण हैं। इनमें अनुष्टुप की २०, गाहू की ६ और उद्गाथा के ७ पद्य जोड़ देने पर ११६३ पद्य मात्रा की दृष्टि से पूर्ण हैं। इनमें गाहू के २ और उद्गाथा के दो पद्य में भी अंतिम लघु का गुरु कर मात्रा पूरी की गयी है। इसके पश्चात् शेष बचे हुए ९८ पद्य के पाठ मात्रा की दृष्टि से अपूर्ण हैं। जिन्हें छन्दों के आधार पर भिन्न-भिन्न हस्तलिखित प्रतियों के पाठ को सामने रखकर पुनर्निर्धारण किया गया है। ये गाथाएँ निम्न प्रकार हैं।
५६ मणिगण १ दीवसिहार वि य तुडियंगा३ भिंग४ तह य कोवीणा५।३०मा. उरुस (?स) ह ६ आमोय ७ पमोया ८ चित्तरसा ९ कप्परूक्खा १० य ।। २८ मा.
प्रस्तुत गाथा के उत्तर्रार्द्ध में २७ की जगह २८ मात्राएँ हैं और अन्तिम लघु है जिसे कम नहीं किया जा सकता। यहाँ ‘पमोया' शब्द की जगह ‘पमोय' कर देने से २७ मात्रा पूर्ण हो जाती है। ६७ मूल-फल-कंद निम्मलनाणाविहइट्टगंध-रसभोगी ।३० मात्रा
ववगयरोगायंका सुरूव सुरदुंदुभि (भी) थणिया ।। २६मात्रा
प्रस्तुत गाथा के उत्तरार्द्ध के कोष्ठक के पाठान्तर 'भी' को 'भि' की जगह रखने से मात्रा पूर्ण हो जाती है। ७० ओसप्पिणीइमीए तइयाए समाए पच्छिमे भाए ।३२ मा.
पलिओवमट्ठभागे सेसम्मि उ कुलगरुप्पत्ती ।।२७ मा.
यहाँ पूर्वार्द्ध के तइयाए समाए के दोनों ए को विकल्प से लघु मान लेने पर मात्रा पूर्ण हो जाती है। ९२ ओसप्पिणीइमीसे तइयाए समाए पच्छिमे भागे ।३२
चइऊण विमाणाओ उत्तरसाढाहिं नक्खत्ते ।। २८ यहाँ भी पूर्वार्द्ध के तइयाए समाए के ए को लघ तथा उत्तरार्द्ध के विमाणाओ
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