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________________ जोगरत्नसार (योगरत्नसार) अष्टम अंग अब कही समाधः५ तामै सगरी मिटे उपाध। साधन वाधन कछु नहीं रहै, सगल त्याग नाद को गहै। नाना विधि सौ नाद कहावै, ताकै सुने विशम हुई जावै।। ३७।। दोहा EEEEEEEEEEEEEE नाद नाद सभ को कहै, नाद सुनै जन कोइ। आज रूप निरंजना, तत्त्व पिछाने सोई ।।३८।। नाद- (ध्वनि) चौपाई अब तामै तीन नाद६ परधान, प्रथम नाद को सक्षम जान। द्वितीय नाद मेघ जों होई, भवर नाद तीजा है सोई। भवन गुंज ताका है नाम, सो आत्म पुरुष का कहीये धाम। सुन्न शब्द फुनि कहिये सोई, सकल उतपत नाद तें होई। आदि अंत नाद परधान, अनहद नाद सदा शिव जान। अंतर ज्योति नाद तैं छाई, आपा चीन्हि चैतन्य गति पाई। तहां निज परमात्मा का वासा, उलटै कवल तब होई विगासा। अखंड अडोल अलख है जहाँ, चर्म दृष्टि की गम नहीं तहां। दिव्य चक्ष से देखै कोई, सकल निरंतर एको सोई। स्वयंभु पद नाम है ताका, अनहद नाद मूल है जाका ।।३९।। दोहरा तहां समाने जहां तत्त्वपद, कह्या कछु नहि जाई। अचरज हुई अचरज मिल्या, सतगुरु दीया बताई ।।४।। चौपाई सो निर्भय महल तुरीया स्थान, नाद जोतिकुं आत्म जान । तहां अलख रूप अचरज ८ दृष्टावै, मगन होई मृतक विसमावै९।। जब आत्मा परमात्मा को मिले, जैसे लोह० पाणी में घलै। तब गीता गाइन कछु नहिं रहै, निज समाधि को तब ही लहै। तहां नाही-नांही सभ जग कहै, अचरज रूप कछु कहा न पर है। जहां नाही-नांही अनजानत कहै, जो जानै सो निजपद लहै। जो समाधि महि सुख नहीं कोई, तो क्युं निद्रा समधि न होई। जो एक होहिं निद्रा अरु समाधि, तौं काहे करीये कष्ट उपाधि। सुन्न समाधि मैं अचरज भाई, क्या कहीये कछु कह्या न जाई अचरज हुई अचरज परगासा, अचरज ठौर अचरज का वासा।
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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