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________________ . जोगरत्नसार (योगरत्नसार) चौपाई लेती वार को पूरक करै, कुंभक सो जौगहि ले रहै। रेचक४ सो जो छूटे वाइ, तीन प्रकार ये भेद कहाई। द्वादश लेके पूरक२५ करै, षोडश करके कुंभक भरे। दश ओंकार तें रेचक होई, ओंकाक्षर जाप को जाणै कोई। तब कुंभक२६ कुंभ संपूरण होई, रेचक पूरक रहि जावै सोई। तब उलट पवन पच्छम को चले, गरजै गगन देह सभ२६ हलै। प्रथम अभ्यास ते उपजै कंपेव, अधिक अभ्यासतै उपजै परसेवर। तब भवर गुफा के भीतर वडै, उलटि पुलटि मीडंक है परै। करम भवंगम साधै करमां, उलटै देही पलटै चरमां। छूटै भिक्षा भोजन गाउ, निहचल जोगी ताका नाउ। करम परम गम जानै कोई, सतगुरु मिलै कमावै सोई ।।२१।। दोहरा मन पवना जब एक होंहि, लीनभय निज नाद। अलख पुरुष तब पाइ दया, सुविधा मिटी उपाधि।।२२।। चौपाई एक और गुह्य है नारी, गुरु मुख जोगी कि नही विचारी। अगम-अगोचर उरध मुख द्वारा, पश्चिम मारग विषडी धारा। गुरु प्रसादि जब तिहि धरि आवै, थर-थर करतें शरीर उठावै तहां वंध उडानी नीका लागे, जरा-मरण तहां सभ किधु भागे। रूखे विरखे ताका वासा, आसा माही रहे निरासा। द्वादश कमल प्राण का वासा, तामै अष्ट कमल परगासा। उलटा मुख ताका विगसाना, जोति सर्व शब्द परगाटाना। तहां लिंग शरीर का वासा, अलटै कवल तब होई विगासा। कंठ-कवल षोडश जान, शिव-शक्ति तहां वसै समान। तिहि स्थान जीव का वासा, हिक हकार से मिलै सवासा। सो कहीये खंड पिंड की संधि, तहां लागै जल रवि-चंद।।२३।। दोहरा विषडा चक्र कंठ का, तहां जीव शिव का वास। उलट प्राण पद मै वसै, नख-शिख भया प्रकाश ।।२४।। ५. प्रत्याहार चौपाई तहां प्रत्याहार फुनि कीजइ भाई, जातै अमृत अग्नि निषाई।
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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