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श्रमण / जनवरी-मार्च १९९९
चौपाई
दोहा
चौपाई
नाड़ियों के नाम और उनके स्थान
ताके
अध ऊरध
भीतर लागे बंद, जोग जुक्ति स्यों साधो कंद । ताकै ऊपर खग अण्डाकार, सकल नाडी" का तहां विस्तार । नाडी तिह ठौर, तामै जीव वसै इक भौर । तामें दशनाडी परधान, तिनके नामहि करौ वख्यान । इडा-पिंगला- सुषमनि नाड़ी, लंवक - पुरुषा अरु गंधारी । दंड मारगी और सुमति जान, सत्य संखिनी मूल स्थान | तामै तीन नाड़ी परधान, इडा-पिंगला- सुषमना जान । तीन पंथ - तीनस्थान, ताकै ऊपरि बसै अपान पछम दंड का विखडा घाट, जहां तिह पेंडा तहां निज वाट
।। १७ ।।
दोहरा
करै, गमन चढ
मेरुदण्ड सूधा बज्र सिला को फोरि कै, रहै सून्य
।। १८ ।।
मूलबंध १ स्थिर ठहराना, नाभिचक्र तब जाइ समाना । नाभिचक्र दश अंगुल नाल, पवन फेर ताकौ उछाल । तहां शक्ति कुंडिलिनी का डेरा, द्वादश हंसा शक्तिहि घेरा । अष्ट प्रकार कुंडलि है कीया, कुंडल वांधि नाभि पर दीया । तहाँ नाभि कमल की विषडी घाटी, निश-दिन जौ अग्नि की भाठी ।
४- प्राणायाम
तव जाइ । लिव लाई
मैं तीन तत्त्व को वास, पानी पवन अग्नि परगास । तहां वंक नाल का उलट दुवारा, हर-हर होत शब्द ओंकारा । अजपाजाप तहां फुनि होई, गुरु प्रसाद लखै जन कोई । हकार शब्द बाहर को आवै सकार शब्द भीतर फुनि जावै ।
शिव हकार है शक्ति सकार, अजपा जाप का यही विचार ।
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अब चौथा अंग कहै प्राणायाम १२, रेचक - पूरक - कुंभक २३ नाम ।। १९ ।।
तीन प्रकार कौ खेल
सतगुरु पूरो जिहि
मिलै,
३५
है, विरलो जानै कोइ ।
इह विधि पावै सोई ।। २० ।।