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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ जाते फूलै देह सभ, छोडि जाइ तब स्वास ।।८।। अष्टांगयोगानुसार आठ अंगों के नाम जोगाभ्यास कहीये अष्टंगा १, सम्मुख झूकै होई निसंगा। जोगाभ्यास नहीं आसाना, आठ पहर का युद्ध बखाना। तत्त्व योग बिन मुक्ति न होई, तन-मन साथै सूरा सोई। अब आठ अंग के वरनों नाम, यम-नेम-आसन-प्राणायाम ! प्रत्याहार पंचमा कहीये, ध्यान-धारणा ते निज पद लहीये। अष्टम अंग अब कहै समाध, आठों साधै मिटै उपाध ।। षट्कर्म षट्कर्म१२ करै काया को धोवै, बिन षट् की ते आठ न होवै । नेती-निवली-बसती-धोती, धोती कर तें त्राणक१३ होती । आठ-छह साधै जिन-जोगी, दिन-दिन वाला कबहु न रोगी । सो कहीये जोगिंद्र पूरा, उलटै पवन बजावै तूरा ।।९।। दोहरा उलट पवन ऊरध को ताने, रहे सुन्न लिव लाई । वंक नाल को उलट कै, गगन पहुचे जाई ।।१०।। चौपाई भेद यक अब और बखाने, वंद भेद मुद्रा फुनि जानें। ताकै तीन भेद फुनि कहै, जाकै साथै निज पद लहै। मनूवा बांधि प्रान फुनि बेधै, इंद्री मूंदि मेर को छेदै। नाद विंद गांठि जब परै, उलट वीर्य तब ऊपरी चढे। जहां वारा सूरज सोला वंद, जो जानै नहीं सो कही(हि)ये अंध । वारा-सोला समकर पीवै, चारौ साथै वारा जीवै । भय-आहार-निद्रा अरु काम, ए चारि कला सूरज के नाम। ऊरम धूरम जोत उजारा, चार भेद बूझे निस्तारा । प्रथमे जोग जुक्ति की येही, जो साधे तिस परै न देही ।।११।। दोहरा धरण गगन के अंतरै, चंद-सर४ को मेल । सो योगी गुरु मुख लहै, अगल कला कौखेल ।।१२।। . चौपाई अष्टांग योग के अन्तर्गत आठ अंगों के लक्षण
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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