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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च १९९९ अन्य एक ऐसा प्रसंग बना कि अजरामर स्वामी अपने शिष्यों के साथ कच्छ से विहार कर लिम्बडी की ओर जा रहे थे। मार्ग में जंगल में से निकल कर एक सिंह दौड़ता हुआ सामने आया। शिष्य लोग घबड़ा गए किन्तु स्वस्थतापूर्वक स्वामीजी ने उन्हें अपने पीछे-पीछे नवकार मंत्र का जाप करते हुए आने को कहा, इससे सिंह वहीं पर बैठ गया और आक्रमण करने के विपरीत एकाग्र दृष्टि से स्वामी जी की ओर देखता रहा। विक्रम संवत् १८४६ में अजरामर जी स्वामी दूसरी बार मालिया से विहार कर कच्छ का रण पार कर एक गाँव में ठहरे थे। उस समय कच्छ के महाराज के मंत्री और मूर्तिपूजक जैनसमाज के प्रतिष्ठित आगेवान वाघजी पारेख का कच्छ के महाराज के साथ कुछ अनबन हो गई है, ऐसी बात फैल गई। अजरामर स्वामी कच्छ के इस गाँव में किसी श्रावक के घर के बाह्य भाग में उतरे हुए थे। रात्रि के अंधेरे में उन्हें कोई आदमी आता दिखाई दिया। स्वामी जी ने पूछा कौन - बाघा पारेख हो । अपना नाम अजरामरजी के मुख से सुन कर बाघा पारेख को आश्चर्य हुआ क्योंकि कि वे एक दूसरे से मिले नहीं थे। स्वामी जी ने बाघा पारेख को बैठा कर कहा“कच्छ के महाराज तुम्हारे पर कुपित हुए हैं, इससे घबड़ा कर तुम छिपते फिरते हो । कच्छ छोड़ कर भाग जाने का विचार करते हो किन्तु तुम्हें ऐसा करने की आवश्यकता नहीं। हिम्मत और धैर्य रखो। महाराज के एक काम पड़ेगा जिसे तुम्हारे सिवा दूसरा कोई नहीं कर सकेगा। उस समय महाराज जी तुम्हे बुलावेंगे। तब तुम्हारे हाथ से कच्छ के प्रजा की सेवा का बड़ा काम होगा।" अजरामर जी स्वामी की कही हुई बात सत्य हुई। महाराज जी ने बाघा पारेख को बुलाया। दोनों के बीच पूर्व मेलमिलाप हो गया। महारानी ने तो अपने भाई के रूप में उसे परिचित कराया। कामेती मुंहता के पद का कार्यभार उसे वापस सौंपा गया। तब से बाघा पारेख को अजरामर स्वामी के वचनों पर अटूट विश्वास हो गया। अजरामर स्वामी ने तीन बार कच्छ में विहार किया था। उन दिनों काठियावाड़ से कच्छ जाना सहज नहीं था। विहार बहुत लंबा और कष्टकर था फिर भी लोगों की धर्म भावना का अनुसरण कर अजरामर स्वामी ने वहां कुल छः चार्तुमास किये थे। तब बाघाजी पारेख की इच्छा थी कि स्वामी जी अपने भुजनगर में पधारें। उन दिनों स्थानकवासी साधुओं को भुज में पधारने की मनाही थी। बाघाजी पारेख ने उसे रद्द कराई और स्वामीजी के प्रवेश के समय बैंडबाजा न बज पाये, इस विषय में संघ को सूचित किया । अजरामर स्वामी ने कच्छ में जो चार्तुमास किये उससे मांडवी की समुद्री वायु और पानी के कारण उन्हें संग्रहणी और वायु का दर्द पैर में हो गया था। अनेक उपचार २५
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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