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________________ जैन साहित्य और दर्शन में प्रभाचन्द्र का योगदान यह उल्लेखनीय है कि अनेकान्तवाद पर आधारित उन नवीन संकल्पनाओं एवं विचारों का भी इसमें समावेश किया गया है जो किसी कारणवश प्रमेयकमलमार्तण्ड में सम्मिलित नहीं हो पाये थे। इसके साथ ही नय एवं निक्षेप पर भी इसमें सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत की गई है। ___ पूर्व की भाँति इस ग्रन्थ में भी प्रभाचन्द्र ने प्रशस्ति के अन्तर्गत में अपने गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का सादर उल्लेख किया है। शब्दांभोजभास्कर देवनन्दि के जैनेन्द्र व्याकरण पर आधारित “शब्दांभोजभास्कर" व्याकरण शास्त्र का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यद्यपि अनके विद्वानों ने इसके प्रभाचन्द्रकृत होने में सन्देह व्यक्त किया है, परन्तु इस टीका के आरम्भ में उद्धृत यह तथ्य कि “प्रमेय कमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र में अनेकान्त की चर्चा की गई है अत: अनेकान्त की चर्चा शब्दांभोजभास्कर में नहीं की जा रही है, इसलिए उक्त दोनों ग्रन्थों का अवलोकन किया जाय।" प्रभाचन्द्र से इस ग्रन्थ का सम्बन्ध जोड़ने में अत्यन्त सहायक प्रतीत होता है। यदि कोई अन्य विद्वान् शब्दांभोजभास्कर का टीकाकार होता तो वह प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र के अवलोकन के आग्रह के साथ ही उक्त दोनों ग्रन्थकारों के नामों का भी उल्लेख करता। किन्तु इसके टीकाकार स्वयं प्रभाचन्द्र हैं इसलिए उन्होंने ग्रन्थों के उल्लेख के साथ ग्रन्थकार के नाम का उल्लेख नहीं किया है। इस ग्रन्थ में प्रसंगवश पूर्ववर्ती आचार्य अभयनन्दि का भी स्मरण किया गया है। वर्तमान में इसके मात्र तीन अध्याय ही उपलब्ध होते हैं। परन्तु विद्वानों ने इसे १६,००० श्लोकों वाले दीर्घ-काय ग्रन्थ होने का अनुमान किया है और यह सम्भव भी प्रतीत होता है। शाकटायन न्यास ___ राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष-प्रथम (८१३-८८० ई०) के समकालीन आचार्य शाकटायन द्वारा रचित “अमोघवृत्ति' नामक व्याकरण ग्रंथ पर आधारित यह टीका ग्रंथ है। सम्प्रति इस ग्रन्थ के मात्र दो अध्याय ही उपलब्ध होते हैं। इसमें इसके प्रतिपाद्य विषय एवं रचनाकार के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध होती है। कतिपय विद्वानों ने इसके प्रभाचन्द्र द्वारा रचित होने में संदेह व्यक्त किया है। किन्तु अभिलेखीय साक्ष्य आदि के आधार पर इसे प्रभाचन्द्र द्वारा विरचित होने की ही अधिक सम्भावना है। यद्यपि इस प्रकार के मत प्रतिष्ठापन में अन्य प्रमाणों की अपेक्षा है। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि शाकटायन श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्य थे। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्य के व्याकरण ग्रन्थ पर दिगम्बर सम्प्रदाय के आचार्य द्वारा १८
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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