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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ रचित यह टीका-ग्रन्थ इन दोनों सम्प्रदायों में परस्पर सौहार्द्र की भावना का सूचक माना जा सकता है। आदिपुराण-उत्तरपुराण टिप्पण ___पुष्पदन्त कृत अपभ्रंश भाषा के महापुराण के दोनों भागों - आदिपुराण एवं उत्तरपुराण पर प्रभाचन्द्र ने पृथक-पृथक टिप्पण-ग्रन्थ रचे हैं। सुविधा की दृष्टि से यहां पर एक ही शीर्षक के अन्तर्गत इनका संक्षिप्त वर्णन है। प्रभाचन्द्र ने अपने प्रारम्भिक दोनों ग्रन्थों- प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र में प्रशस्ति के अन्त में अपने गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का स्मरण किया है जबकि उक्त टिप्पण ग्रंथों में उन्होंने अपने गुरु का स्मरण नहीं किया है। अत: शास्त्री महोदय इनके प्रभाचन्द्र द्वारा रचित होने में संशय व्यक्त करते हैं।१०।। परन्तु यह भी संभव है कि टिप्पण ग्रन्थ होने के कारण प्रभाचन्द्र ने गुरु के नाम का स्मरण करना बहुत आवश्यक न समझा हो। वस्तुत: भाषा-शैली एवं वाक्य-रचना आदि की दृष्टि से तो इसे प्रभाचन्द्र द्वारा प्रणीत मानना अधिक उपयुक्त होगा। इस प्रकार प्रभाचन्द्र एवं उनकी कृतियों के सामान्य अध्ययन से जैन साहित्य सर्जन एवं दार्शनिक चिन्तन-मनन में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान परिलक्षित होता है। ऐसा प्रतीत होता है वे अपने समय में व्याप्त दार्शनिक मत-मतान्तरों के समाधान के लिए अनेकान्वाद एवं स्याद्वाद की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए प्रयत्नशील थे। उनकी साहित्यिक विधा एवं व्याकरणीय सिद्धान्तों में गहरी पैठ थी। वे अपनी सर्जना एवं सिद्धान्तों के माध्यम से सभी के लिए समादरणीय बन गए। م به سه सन्दर्भ महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य- जैन दर्शन, श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, काशी १९५५, पृ०२७. नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, मुम्बई १९५६, पृ० २८९. प्रतिपाल भाटिया- दि परमाराज, दिल्ली १९७०, पृ० ३३०; नाथूराम प्रेमी, वही, पृ० २९०; कस्तूरचन्द कासलीवाल, (सं०)- राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची, भाग-२, श्री महावीर ग्रन्थमाला, जयपुर १५५४. श्री पद्मनन्दि सैद्धान्तिशिष्योऽनेक गुणालयः। प्रभाचन्द्रश्चिरं श्रीमान् रत्ननन्दि पदेरतः ।।
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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