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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ शासक भोज तथा जयसिंह का विशेष सहाय्य मानना चाहिए। यद्यपि विद्वानों द्वारा इनकी रचनाओं की एक लम्बी सूची प्रस्तुत की जाती है, यथा प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, शब्दांभोजभास्कर, रत्नकरण्ड टीका, क्रियाकल्प टीका, समाधितंत्र टीका, आत्मानुशासनतिलक, द्रव्यसंग्रह पंजिका, शाकटायनन्यास, प्रवचनसरोजभास्कर, सर्वार्थसिद्धि-टिप्पण, उत्तरपुराण टिप्पण, आदिपुराण टिप्पण आराधनाकोष (गद्य), अष्टपाहुड़ पंजिका, देवागम पंजिका, समयसार टीका, पंचास्तिकाय टीका, मूलाचार टीका, आराधना टीका आदि। परन्तु इनमें से अनेक के बारे में यह कह पाना कि ये प्रभाचन्द्रकृत ही हैं, अत्यन्त कठिन है। संभव है प्रभाचन्द्र की रचनाओं की यह लम्बी सूची विविध समयों में हुए एकाधिक प्रभाचन्द्र के परस्पर तादात्म्य बिठा देने के कारण हो। किन्तु यहाँ उन्हीं ग्रंथों के परिचयोल्लेख का मैंने प्रयत्न किया है जिन्हें ११वीं१२वीं शताब्दी ई० में हुए प्रभाचन्द्र से सम्बद्ध किया जा सकता है; और जिनका जैन धर्म-दर्शन एवं तत्कालीन साहित्य जगत में अपना अत्यन्त विशिष्ट स्थान है।
विषय की दृष्टि से इन ग्रन्थों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है(१) न्यायशास्त्र पर आधारित ग्रन्थ - (अ) प्रमेयकमलमार्तण्ड
(ब) न्यायकुमुदचन्द्र (२) व्याकरणशास्त्र पर आधारित ग्रन्थ (अ) शब्दांभोजभास्कर
(ब) शाकटायनन्यास (३) पुराण पर आधारित ग्रन्थ
(अ) उत्तरपुराण टिप्पण
(ब) आदिपुराण टिप्पण प्रमेयकमलमार्तण्ड
प्रमेयकमलमार्तण्ड जैन न्यायशास्त्र का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। इस ग्रन्थ की रचना राजा भोज के राज्यकाल में हुई थी। यह प्रभाचन्द्र के पूर्ववर्ती आचार्य माणिक्यनन्दि के ‘परीक्षामुख' नामक न्यायग्रंथ पर आधारित विस्तृत एवं सारगर्भित भाष्य है। इस ग्रन्थ में प्रभाचन्द्र ने जैन धर्म के आधारभूत सिद्धान्त अनेकान्तवाद की विस्तृत व्याख्या की है। इसमें प्रभाचन्द्र ने अपने गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिक का भी ससम्मान स्मरण किया है। न्यायकुमुदचन्द्र
प्रभाचन्द्र का न्यायशास्त्र पर आधारित यह दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है एवं विषयशैली, अभिव्यंजना आदि की दृष्टि से यह प्रमेयकमलमार्तण्ड के बाद जयसिंह के समय में रचा गया प्रतीत होता है।५
सप्त परिच्छेदों में विभाजित इस ग्रन्थ में प्राय: अनेकान्वाद की ही चर्चा है।