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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ के लिये कथाभिप्राय का मुख्यप्रयोजन होता है, अत: उनका अध्ययन प्रस्तुत कर के लेखक ने कथा साहित्य के अध्ययन के एक अपेक्षाकृत कम ज्ञात क्षेत्र का क्षितिज विस्तृत किया है और इसके लिये वह साधुवाद का पात्र है। ग्रन्थ के प्रथम अध्याय (विषय प्रवेश) में उपलब्ध हिन्दी जैन कथा साहित्य का उल्लेख है। द्वितीय अध्याय में हिन्दी जैन कथाओं के लोककथारूप की चर्चा है। तृतीय और चतुर्थ अध्याय लेखक की निष्ठापूर्वक शोधप्रवृत्ति का परिचय प्रस्तुत करते हैं तृतीय अध्याय में जैन साहित्य की प्रमुख कथानक रूढ़ियों का अनुशीलन किया गया है। इसमें लगभग २ हजार कथाभिप्रायों को छांट कर उसमें प्रमुख अभिप्रायों का विश्लेषण किया गया है। यह महत्त्वपूर्ण कार्य अत्यन्त श्रमसाध्य और मौलिक है। चतुर्थ अध्याय कथामानक रूप है। अन्त में परिशिष्ट के प्रारम्भ में २७६ कथाओं की सूची देकर लेखक ने आगे इस क्षेत्र में कार्य करने वाले शोधकर्ताओं के लिये प्रचुर सामग्री प्रदान कर दी है। यह ग्रन्थ वस्तुत: उपयोगी और प्रामाणिक है। लेखक से अपेक्षा है कि वह भविष्य में इसी प्रकार मानक ग्रन्थों द्वारा जैन वाङ्मय की श्रीवृद्धि करते रहेंगे। डॉ० शीतकंठ मिश्र पूर्व प्राचार्य डी० ए० बी० डिग्री कालेज वाराणसी। श्रीजैनमहागीता (विशुद्ध मोक्षमार्ग वचानामृत), लेखक श्री जसकरण डागा, पृष्ठ ५०+३६२; प्रकाशक- श्री जीव दयामण्डल c/o डागा सदन, संघपुरा; पो० टोंक; राजस्थान, आकार-डिमाई, प्रथम संस्करण १९९८; मूल्य २५ रूपया. प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वान् लेखक ने न केवल श्वेताम्बर और दिगम्बर बल्कि अन्य भारतीय परम्पराओं को भी आधार बनाकर सम्पूर्ण जैनदर्शन व अध्यात्म के उपयोगी प्रसंगों को प्रश्नोत्तर के रूप में खड़ी बोली में उत्यन्त उदार भाव से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। पुस्तक सभी के लिए पठनीय और मननीय हैं ग्रन्थ की साजसज्जा आकर्षक और मुद्रण त्रुटिरहित है। ऐसे उपयोगी ग्रन्थ के प्रणयन के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं। ए बी सी ऑफ जैनिज्म : शांतिलाल जैन; प्रकाशक- ज्ञानोदय विद्यापीठ, भोपाल-मध्यप्रदेश, प्रकाशन वर्ष - १९९८ ई० स०; पृष्ठ ५+६९; मूल्य ५० रूपये। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के आचार्य पद प्राप्ति के २५वें वर्ष के उपलक्ष्य में मुनि क्षमासागर की प्रेरणा और उन्हीं के निर्देश में श्री शांतिलाल जैन ने आंग्ल भाषा में इस सुन्दर लघु पुस्तिका की रचना की है। इसमें माता तथा पुत्र-पुत्री के मध्य प्रश्नोत्तर की शैली में जैन धर्म-दर्शन के विविध पहलुओं को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रतिपादित किया
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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