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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ provoking
Jaina Karmology is, in fact a compendium of all aspects of the Karma theory, with uniqueness in its critical and comparativelye valuvative approach. It is helped and comparitively evaluative approach. It is hoped that this will be liked by every scholarly and general reader who will realise that is only such book which are needed to day to promote Jainism on global scale.
हिन्दी जैन कथा साहित्य (कथानक रूढ़ियाँ और कथा अभिप्राय) - लेखक - डॉ० सत्य प्रकाश; प्रकाशक - श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सब्जीमंडी, दिल्ली, प्रथम संस्करण १९९३ ई०; पृष्ठ ४७०; मूल्य : x.
कथा कहानी दादी नानी की जुबानी हम आदिम काल से सुनते आ रहे हैं। कथा साहित्य की प्राचीनतम विधा है जो हजारों वर्षों तक केवल मौखिक परम्परा में चलती रही, इसी लिए इसमें लोकतत्त्व, लोकरूढ़ियाँ, अभिप्राय, लोकवार्तायें सर्वाधिक प्राप्त होती हैं। सच पूछा जाये तो बिना कथानक, लोकरूढ़ियाँ और अभिप्रायों को समझे कथासाहित्य का अध्ययन कभी पूर्ण हो ही नहीं सकता। इसलिए शोधकर्ता ने हिन्दी जैन कथासाहित्य का अध्ययन कथानक रूढ़ियों और अभिप्रायों के साथ गम्भीरता पूर्वक किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में हिन्दी भाषा में वि० सं० की १३वीं शताब्दी से १९ वीं शताब्दी तक रचित जैन कथाओं के अभिप्रायों का अध्ययन ४ अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है। अधिकतर कथायें पद्यबद्ध हैं, कुछ गद्य और गद्य-पद्य दोनों में हैं। उपलब्ध-कथाओं की संख्या २६७ है और एक ही कथा को अलग-अलग समय में विभिन्न लेखकों द्वारा कई बार लिखने से उनकी संख्या बढ़कर ७०५ हो गयी है। इसमें लगभग १५० कथाओं का कथासार है । २७ प्राकृत कथाओं के तथा १० अपभ्रंश की कथाओं के कथारूप भी दिये गये हैं। इसके साथ ही ११२ हिन्दी कथाओं के कथारूप अलग से दिये गये हैं।
कथा, पुराण, चौपाई, रास, प्रबन्ध चाहे जो भी नाम हो या उनमें जो भी सूक्ष्म तात्विक अन्तर हो, पर सर्वत्र एक कथा या कहानी अवश्य रहती है अन्तर केवल अभिव्यंजना शैली का होता है। सबके मूल में कोई छोटी-बड़ी बात तो रहती ही है। यदि कोई कथा न हो तो लेखक या कथाकार क्या कहेगा, इसी लिये बात, वार्ता, कथा, रास, चरित, पुराण सभी का मूलाधार बात या कथा है। इन कथाओं में कथा अभिप्रायों का भरपूर प्रयोग उपलब्ध होता है। यह विधा प्रत्येक युग में मनोरंजक रही है। इस मनोरंकता को उत्पन्न करने वाले तत्त्वों में कथाभिप्रायों का योग मुख्य है। काव्य में प्रयुक्त होने वाली रूढ़ियों को ‘कविसमय' कहा जाता है किन्तु विश्व के कथासाहित्य में प्रयुक्त होने वाली कथानक रूढ़ियों को 'कथाभिप्राय' कहा जाता है। कथा में रूढ़ियों का प्रयोग किसी प्रयोजनवश किया जाता है। उसे गतिशील बनाने, नया मोड़ देने या चमत्कार उत्पन्न करने