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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ से सम्बद्ध बतलाना वस्तुतः इतिहास की एक अनबूझ पहेली है जिसे पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में सुलझा पाना कठिन है और यह प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाता है।
सन्दर्भ १.२-(अ)
तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये गणे। श्रीमच्चान्द्रकुले वटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते । श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपाप्राप्तावदातेऽधुना स्फूर्जद्भरि गुणान्विता गणधर श्रेणी सदा राजते ॥२॥ वर्षे वेद-मुनीन्द्र-शंकर (११७४) मिते श्रीदेवसूरिःप्रभुः जज्ञेऽभूत तदनु प्रसिद्ध महिमा पद्मप्रभः सूरिराट् ।। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति
(स)
A. P.Shah, Ed, Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss, Muni Punya VijayaJis Collection, Part II, L. D. Series No-5, Ahmedabad 1965 A.D, Pp 376-377. "नागपुरीयतपागच्छ पट्टावली" मुनि जिनविजय, संपा०, विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१, पृष्ठ ४८-५२. "नागपुरीयतपागच्छपट्टावली" मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, नवीनसंस्करण, संपा०डॉ० जयन्त कोठारी, भाग९, मुम्बई १९९७ ई०, पृष्ठ - ९८-१०५. महोपाध्याय विनयसागर, संपा०, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, कोटा १९५३ लेखांक-८६५ वही, लेखांक ९९४ वही, लेखांक ९९५ वही, लेखांक १०९२ सारस्वतव्याकरण दीपिका की प्रशस्ति :
सुबोधिकायां क्लुप्तायां सूरिश्रीचन्द्रकीर्तिभिः। कृत्प्रत्ययानां व्याख्यानं बभूव समनोहरम् ।।१।। तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये गणे श्रीमच्चान्द्रकुले बटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते। श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपाप्राप्तावदातेऽधुना
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