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________________ नागपुरीयतपागच्छ का इतिहास सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में उल्लिखित रचनाकार चन्द्रकीर्ति के गुरु राजरत्नसूर और प्रगुरु सोमरत्नसूरि समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित राजरत्नसूरि और उनके गुरु सोमरत्नसूर से अभिन्न माने जा सकते हैं। इस आधार पर चन्द्रकीर्तिसूरि और रत्नकीर्तिसूरि-सोमरत्नसूरि के प्रशिष्य, राजरत्नसूरि के शिष्य और परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। इस प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों का जो वंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है: चन्द्रकीर्तिसूरि (वि० सं० १६२३ में सारस्वतव्याकरणदीपिका के कर्ता प्रसिद्ध रचनाकार) मानकीर्तिसूरि अमरकीर्तिसूरि महो० देवसुन्दर सोमरत्नसूर (वि० सं० १५५१) प्रतिमालेख (नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करनेवाला सर्वप्रथम साक्ष्य ) हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रथमादर्श प्रति के लेखक ) मुनिधर्म (वि० सं० १६५७ में गोपालटीका के प्रतिलिपिकार) राजरत्नसुरि शिवराज रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६) प्रतिमालेख पद्मचन्द्र ( इसकी प्रार्थना पर सारस्वतव्याकरणदीपिका की रचना हुई) भावचन्द्र (गोपालटीका के कर्ता) चूंकि नागपुरीयतपागच्छ का वि० सं० १५५१ से पूर्व कहीं भी कोई ११३
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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