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________________ मुनिराज वन्दना बत्तीसी ९५ पाँच समिति कवित्त- १. ईर्या समिति निरख-निरख, पग धरत-धरत करुणा चित लावत। तीन पैड भू चलत निरख, त्रिसकाय न सतावत ।। बिक्षा' अर्थ नगर में आवत, जानत हार सो प्रासुक खावत। जैसे मनीस नमूं नित सीश करो भवतीर सदासुख पावत ।।१०।। सवैया- २. भाषा समिति जैसे मुनी बोले बेन, सबन को सुख देन । नहीं तो धरत मौन, संबर बडाय जु।। मन में विचार लेत, जब ही वचन कहत। परजीव पीडा नहीं पायजु।। हिंसा के वचन त्यागी, दया दिल मांहि जागि, कर्म ही खपाय जु।। भाषा ही सुमति धारि, मुनिराज होय भारि कहत चिरंजी सिर नाय जू।।११।। दोहा- ३. एषणा समिति छियालिस दोष ही टाल, मुनिवर हार जो लेत हैं। बाईस अभख निवार, प्रासुक हार मुनी ग्रहत हैं।।१२।। सवैया- ४. आदान निक्षेपण समिति जेणां दिल माहि घर, उपकरन लहे पास, जीव न हंणाय जू। १. भिक्षा २. आहार ३. भाषा समिति ४. जैन आचार शास्त्रों में मुनि को आहार सम्बन्धी ४२ दोषों से बचकर आहार ग्रहण करने का विधान है। ये ४२ दोष इस प्रकार हैं- उद्गम के १६ दोष, + उत्पादन १६ दोष, + एषणा विषयक १० दोष + संयोजनादि ४ दोष =४६ विस्तार से देखें मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, डॉ० फूलचंद जैन प्रेमी, पृ० २६९-२८० ५. आहार ६. बाईस अभक्ष्य (न खाने योग्य वस्तुएं इस प्रकार हैं)- ओला, धोखड़ा, निशिभोजन, बहुबीजक, बैंगन संधान बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर, पाकरफल जो होय अजान।। कन्दमूल, माटी, विष, आमिष, मधु, माखन, अरु मदिरापान । फल अति तुच्छ, तुषार चलित रस, जिनमत ये बाइस बखान ।। -जिनेन्द्र सिद्धान्त प्रकाश, भाग-३, पृ०२०२
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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