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________________ ९४ श्रमण/जनवरी-मार्च / १९९८ दोहा - दोहा - ध्यान की उत्कृष्टता - (सवैया) - सवैया मर्म सब हार दिढ, समगत धारि हैं || ४ || ५. ७. हृदय पंच महाव्रत को धारे, पंच सुमति हिय धार तीन गुप्ति गोपे सदा, सो साधु गुण धाम ॥ ५ ॥ सुकल' ही ध्यान करे, कर्म सब दूर टले । आतमा को काज करे, कर्म ही उटाय जु।। सुकल ही लेस्या धारि, भये व्रत मौन धारि । लगि प्रभु प्रितरे भारि, मन वच-काय जु।। सात ही जो भय त्याग, जीवण की नाही आस । गहो निज सरूप ज्ञान, सिव सुख पाय जु ॥ ध्यान माहि थिर होय, भर्म की रिति ओय । सिघ्र' ही सरूप जोय, मन थीर थाय जु॥ ६ ॥ ज्ञान की महिमा - जो ज्ञान क्रिया हिय धारि, सो मूढन मुखिया सिरदार जो बिन पति अबला कहीय, त्यों विन ज्ञान क्रिया क्यों गही || ७॥ १. शुक्ल ३. प्रीत शीघ्र ज्ञानगम्य शिव प्राप्त फल कर्म कलंक नसाय। शिवपदवी को वे बरें, जिनके हिरदे ज्ञान ॥ ८॥ ज्ञान ही तें मोख' होय, ज्ञान ही ते कर्म खोय ज्ञान ही तें सुख पाय, ज्ञान ही ते पुंन - पाप जाने ज्ञान ही ते आश्रव-संवर सो जानिये । ज्ञान ही ते बंध मोख, ज्ञान ही ते ते सुर पद पाये। कहत चिरंजी लाल, जगत में ज्ञानसार याते भेद ज्ञान सब धर्म बीच लाये ॥ ९ ॥ सुख होत ज्ञान २. मूल प्रति में भय ४. मूल पाठ - थीर = स्थिर ( एकाग्र ) ६. सरदार (प्रधान) ८. मोक्ष
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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