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________________ ७२ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ जिनहर्षसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि ‘द्वितीय' (आचार्य पद वि० सं० १५४४) हुए।२३ वि० सं० १५६७ और वि० सं० १५७७ के तीन प्रतिमालेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है।२४ इनके समय में वि० सं० १५५६/ई० सन् १५०० में वाचक विवेकसिंह गणि की परम्परा के धर्मसमुद्र ने सूक्ष्मजातकशास्त्र की प्रतिलिपि की, जिसकी प्रशस्ति२५ में उन्होंने जिनवर्धनसूरि से लेकर जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय' तक की गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है: जिनवर्धनसूरि जिनचन्द्रसूरि 'प्रथम' जिनसागरसूरि जिनसुन्दरसूरि जिनहर्षसूरि जिनचन्द्रसूरि ‘द्वितीय' (इनके नायकत्वकाल में वि०सं० १५५६/ई० स० १५०० में मुनि धर्मसमुद्र द्वारा सूक्ष्मजातकशास्त्र की प्रतिलिपि की गयी) जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय', विवेकसिंहगणि और धर्मसमद्रगणि में परस्पर क्या सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रशस्ति से ज्ञात नहीं होती। धर्मसमुद्रगणि द्वारा रचित सुमित्रकुमाररास(रचनाकाल वि० सं० १५६७/ई० सन् १५११, प्रभाकरगुणाकरचौपाई (वि०सं० १५७३/ई०स०१५१७, कुलध्वजकुमाररास (वि०सं० १५८४/ई० स० १५२८, शकुन्तलारास, सुदर्शनरास, अवन्तिसुकुमालसज्झाय, रात्रिभोजनचौपाई आदि कई कृतियां प्राप्त होती हैं।२६ सुमित्रकुमाररास की प्रशस्ति२७ में इन्होंने स्वयं को जिनचन्द्रसूरि का प्रशिष्य और विवेकसिंहगणि का शिष्य बतलाया है: तासु पट्टि गुरु संपइ सोहई, श्रीजिनचंद्रसूरि जग मोहइ, दोहग नासइ नाभि। वाचक विवेकसंघ लघु सीस, प्रभणइ श्रीधर्मसमुद्र गणीस, आणी बुद्धि वि छंद। संवत पनरहसि सतसठइ, जालउर नयर पास संतुठइ, कीऊ कवित आणंदइ। आरामशोभाकथा (वि०सं० की १६वीं शती का तृतीयचरण लगभग) के रचनाकार मलयहंस भी जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय' के ही शिष्य थे।२८ जिनचन्द्रसूरि ‘द्वितीय' के पट्टधर जिनशीलसूरि (आचार्य पद वि०सं०
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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