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जैन एवं बौद्ध ध्यान पद्धतिः एक अनुशीलन साधना है। दैनिक जीवन के तनाव-खिंचाव से विकृत हुए चित्त को ग्रन्थि विमुक्त करने का सक्रिय अभ्यास है।२२
जैन दर्शन में जहां आत्मा की बात कही जाती है, वहीं बुद्ध कहते हैं- दुःख को मिटाओ, दु:ख के हेतु को मिटाओ, आत्मा के झगड़े में मत पड़ो, महावीर कहते हैं- केवल अग्र को मत पकड़ों, मूल तक जाओ।२३ बुद्ध का दर्शन है- अग्र पर ध्यान केन्द्रित करना, वहीं महावीर का दर्शन है- केवल अग्र नहीं, मूल पर केन्द्रित होना। प्रेक्षाध्यान के साथ आत्म-साक्षात्कार का दर्शन जुड़ा है वहीं विपश्यना के साथ दुःख को मिटाने का दर्शन जुड़ा है। प्रेक्षाध्यान और विपश्यना में कुछ प्रयोग समान हैं, फिर भी उनकी प्रयोग-विधि में अन्तर है। नीचे कुछ प्रयोगों का किस-किस ध्यान-पद्धति में प्रयोग किया जाता है, इसका उल्लेख किया जा रहा है
श्वास प्रेक्षा- इसका प्रयोग विपश्यना और प्रेक्षा दोनों में ही किया जाता है। विपश्यना सहज श्वास को देखने पर बल देती है।२४ प्रेक्षा में दीर्घश्वास पर बल दिया जाता है।२५ विपश्यना में प्रयत्न नहीं किया जाता जबकि प्रेक्षा में प्रयत्नपूर्वक लम्बा श्वास लेने का निर्देश भी दिया जाता है। जहाँ एक ओर सहज श्वास का प्रयोग है तो दूसरी और प्रयत्नकृत दीर्घश्वास का प्रयोग। विपश्यना में कहा जाता है- जो अनायास, सहज, श्वास चल रहा है उसकी विपश्यना करो, उसे देखो, किसी प्रकार का आयास मत करो।२६ प्रेक्षा में कहा जाता है- गहरा, लम्बा और लयबद्ध श्वास लें, गहरा, लम्बा और लयबद्ध श्वास छोड़ें, आते- जाते श्वास की प्रेक्षा करें।२७ प्रेक्षा में आयास का विरोध नहीं है अपितु वहां पर प्रयत्न द्वारा श्वास लेने का सुझाव दिया जाता है। श्वास संयमः समवृत्ति श्वास प्रेक्षा
विपश्यना में कुम्भक का प्रयोग नहीं कराया जाता है। प्रेक्षा में इसका प्रयोग किया जाता है। लयबद्ध श्वास भी प्रेक्षाध्यान में किया जाता है, जिसमें श्वास की प्रत्येक आवृत्ति समान होती है। इसकी विधि है- पांच सेकेण्ड श्वास लेना, पांच सेकेण्ड श्वास भीतर रोकना, पांच सेकेण्ड श्वास बाहर निकालना, पांच सेकेण्ड श्वास बाहर रोकना।२८ इस प्रकार पुनः इस क्रिया को दोहराना चाहिए। प्रेक्षा में समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग भी किया जाता है। विपश्यना में ऐसा कोई प्रयोग नहीं कराया जाता है। इस प्रयोग की विधि है- दाएं नथुने से श्वास लेकर बाएं नथुने से निकालें और बायें से श्वास लेकर दाएं नथुने से श्वास बाहर निकालें। चित्त और श्वास- दोनों साथ-साथ चलें, निरन्तर श्वास का अनुभव करें।२९ इसके अतिरिक्त चन्द्रभेदी श्वास, सूर्यभेदी श्वास, उज्जाई श्वास आदि अनेक प्रयोग प्रेक्षा को विपश्यना से अलग करते हैं, क्योंकि विपश्यना में ऐसे कोई प्रयोग नहीं कराये जाते हैं।