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जैन एवं बौद्ध ध्यान पद्धति: एक अनुशीलन २५. वाशसित
२६. प्रज्ञातर २७. पुण्यमित्र
२८. बोधिधर्म। इस प्रकार बोधिधर्म अट्ठाईसवें धर्मनायक हैं और यही बोधिधर्म चीन में 'ध्यानसम्प्रदाय' के प्रथम धर्मनायक हुए हैं।१६ समय के साथ-साथ यह ध्यान- विधि भारत के पड़ोसी देशों- बर्मा, श्रीलंका, थाईलैण्ड आदि में फैल गई। बुद्ध के परिनिर्वाण के लगभग ५०० वर्ष बाद विपश्यना भारत से लुप्त हो गई। दूसरी जगह भी इसकी शुद्धता नष्ट हो गई। केवल बर्मा में इस विधि के प्रति समर्पित आचार्यों की एक कड़ी के कारण यह अपने शुद्ध रूप में कायम रह पाई। इसी परम्परा के प्रख्यात आचार्य सयाजी ऊबाखिन भी विपश्यना ध्यान का प्रचार करते थे, स्वयं साधना का जीवन जीते और लोगों को सिखाते। ब्रह्मदेश (बर्मा) के ही श्री सत्यनारायण गोयनका, जो कि विपश्यना की ओर स्वत: ही आकर्षित हुए थे, विपश्यना के प्रति उनके आकर्षण को देखकर ही सियाजी ऊबा खिन ने उन्हें लोगों को विपश्यना सिखलाने के लिए १९६९ में आचार्य पद सौंपा।१७ गोयनका जी ने भारत में ही नहीं, अपितु ८० से भी अधिक देशों में लोगों को फिर से विपश्यना सिखायी और अपने आचार्य सियाजी ऊबाखिन का स्वप्न साकार किया। इस प्रकार विपश्यना ध्यान-पद्धति को भी पुनः विकसित करने का श्रेय श्री सत्यनारायण गोयनका जी को ही जाता है। अर्थ एवं परिभाषा
'प्रेक्षा' शब्द 'ईक्ष्' धातु से बना है। इसका अर्थ है-देखना। प्र+ईक्षा=प्रेक्षा यानी गहराई में उतरकर देखना।१८ विपश्यना भी ‘पश्य्' धातु से बना है। जिसका अर्थ हैदेखना। विपश्यना विपश्यना। इसका अर्थ भी प्रेक्षा के समान ही गहराई में उतरकर देखना है।१९
प्रेक्षा और विपश्यना दोनों ही ध्यान-पद्धतियों के प्रयोग वर्तमान में चल रहे हैं। प्रेक्षा व विपश्यना—दोनों शब्दों का अर्थ भी एक ही है, परन्तु इनकी पद्धति और दर्शन में अंतर है। प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य है- आत्मा का साक्षात्कार, आत्म-दर्शन और विपश्यना का उद्देश्य है- दुःख को मिटाने का दर्शन, क्योंकि बौद्ध दर्शन में आत्मवाद की स्पष्ट अवधारणा नहीं है।
दार्शनिक आधार- प्रेक्षाध्यान और विपश्यना दोनों में ही क्रमशः श्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा और आनापानसति व काय-विपश्यना के प्रयोग चलते हैं। लेकिन प्रेक्षाध्यान में इनके अलावा भी कई प्रयोग चलते हैं जिनका वर्णन आगे किया जा रहा है। कुछ प्रयोग समान होने पर भी उनमें मूलभूत अंतर दर्शन का है, क्योंकि एक आत्मवादी है तो दूसरा अनात्मवादी है; एक अनेकान्तवादी है तो दूसरा क्षणभंगवादी है।