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________________ ४६ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ ये प्रयास पूर्ण नहीं थे। वि० सं० २०२९ में लाडनूं में एक महीने का व चूरू, राजगढ़, हिसार और दिल्ली में दस-दस दिन के साधना शिविर लगाये गये। जिसके कारण अनेक साधु-साध्वी तथा गृहस्थ लोग भी ध्यान-साधना में रुचि लेने लगे। वि० सं० २०३१ में 'अध्यात्म साधना केन्द्र' दिल्ली में सत्यनारायण जी गोयनका ने 'विपश्यना ध्यान शिविर' का आयोजन किया। उस शिविर में अनेक साधु-साध्वियों के साथ ही युवाचार्य महाप्रज्ञ ने भी भाग लिया और आनापानसती व विपश्यना के प्रयोग किये। इन प्रयोगों से उन्हें जैन ध्यान-साधना पद्धति की समस्या का समाधान मिल गया। महाप्रज्ञ जी ने गोयनका जी से इस विषय पर विस्तार से चर्चा की। चर्चा करने के बाद उन्होंने जैनों का आचाराङ्ग, बौद्धों का विशुद्धिमग्ग और पतञ्जलि का योगदर्शन- इन तीनों को लेकर ध्यान-सूत्रों की अभ्यास पद्धति की खोज प्रारम्भ कर दी।१४ इस प्रकार लम्बे समय तक अन्वेषण करते-करते युवाचार्य महाप्रज्ञ को सफलता प्राप्त हुई। वि० सं० २०३२ में जैन परम्परागत ध्यान का अभ्यास क्रम निश्चित करने का संकल्प हुआ और ध्यान की इस अभ्यास-विधि का नाम 'प्रेक्षाध्यान' रखा गया। प्रेक्षाध्यान पद्धति को जनसमूह के सामने लाने का पूरा श्रेय आचार्य तुलसी व युवाचार्य महाप्रज्ञ को जाता है। विपश्यना- यह भारत की एक अत्यन्त पुरातन ध्यान-विधि है। २५०० वर्ष पूर्व भगवान् गौतम बुद्ध ने पुन: इसे खोज निकाला था और अपने शासन के ४५ वर्षों में स्वयं इसका अभ्यास किया और लोगों से भी करवाया। भगवान् बुद्ध ने इसे अपने शिष्य महाकश्यप के मन में संप्रेषित कर दिया और महाकश्यप ने आनन्द के मन में । इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा के क्रम से यह ध्यान-विधि निरन्तर चलती रही। ध्यानसम्प्रदाय के इतिहास ग्रन्थों में महाकश्यप और आनन्द तथा क्रमश: बोधिधर्म तक अट्ठाईस धर्माचार्यों के नाम मिलते हैं जो इस प्रकार हैं-१५ १. महाकश्यप २. आनन्द शाणवास ४. उपगुप्त धृतक ६. मिच्छक वसुमित्र ८. बुद्धनन्दी बुद्धमित्र १०. भिक्षु पार्श्व पुण्ययशस् १२. अश्वघोष १३. भिक्षुकपिमाल १४. नागार्जुन काणदेव १६. आर्य राहुलक १७. संघनन्दी १८. संघयशस् १९. कुमारिल २०. जयंत २१. वसुबन्धु २२. मनुर २३. हक्लेनयशस् (हक्लेन) २४. भिक्षु सिंह १५.
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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