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जैन दर्शन और कबीर: एक तुलनात्मक अध्ययन ७. कबीर-ग्रन्थावली, मिश्र, साखी ४४, पृ०-७३. ८. माया पिया ण्हुसा भाया, भज्जा पुत्ता व ओरसा।
नालं ते मम ताणाए, लुप्पंतस्स सकम्मुणा।। - उत्तराध्ययन, संपा० आचार्या चन्दना जी, वीरायतन प्रकाशन,
आगरा, १९७२ ई०, ६/१३. ९. कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), पद १४३, पृ०-३१४. १०. स्त्रग-नृक थें (सरग-नरक थें) हूँ रह्मा, सतगुर के प्रसादि।
चरन कँवल की मौज मैं, रहिस्यूं अंति स आदि।।
कबीर-ग्रन्थावली-सा० ४, पृ०-३७ (मिश्र)-सा ६, पृ०-१४०. ११. कबीर ग्रन्थावली, साखी- ४, पृ०-३७. १२. कबीर ग्रन्थावली, साखी-७, पृ०-३२. १३. ईश्वर प्राणिधानाद्वा १४. मय्यर्पित मनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः। गीता- १२/१४ १५. सा त्वस्मिन्द परमप्रेमरुपा अमृतस्वरूपा च १६. अर्हदाचार्य बहुश्रुत प्रवचनेषु भावविशुद्धि युक्तोऽनुरागो भक्तिः।
___ .सर्वार्थसिद्धि, पूज्यपाद १७. यशस्तिलकचम्पू महाकाव्य, (उत्तरखंड) सोमदेवसूरि,
___ व्याख्याकार-पं० सुन्दरलाल, ६/६९. १८. -मुनि योगीन्दु, परमात्मप्रकाश, १२५. १९. -मुनि रामसिंह, पाहुडदोहा, ४९, पृ०-१६. २०. -परमात्मप्रकाश, २६, पृ०-२३. २१. -पाहुडदोहा, पृ०-५६. २२. हम भी पाहन पूजते, होते बन के रोझ।
सतगुरु की किरपा भई, डारया सिर 3 बोझ।"
कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), सा० ४, पृ०-११७. २३. वसुनन्दी-श्रावकाचार, ४८१. २४. कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), सा ४२, पृ०-४८. २५. कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), रमैंणी, १-७, पृ०- ५५८.