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________________ ४४ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ श्रमण जैन एवं बौद्ध ध्यान पद्धतिः एक अनुशीलन डॉ० सुधा जैन* भारतीय योग-परम्परा में ध्यान का अपना एक विशिष्ट स्थान है। भारतीय परम्परा का ऐसा कोई भी सम्प्रदाय या दर्शन (चार्वाक को छोड़कर) नहीं है जो योग या ध्यान-प्रक्रिया को स्वीकार न किया हो। जहाँ तक ध्यान के प्रारम्भ की बात है तो ध्यान की परम्परा प्राचीनकाल से ही अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। इसका आदि स्रोत खोजना अत्यन्त ही कठिन है। किन्तु इतना तो सत्य है कि यह प्राक्-ऐतिहासिक है। उपलब्ध ग्रन्थों के आधार पर योग के आदि-बिन्दु की कल्पना की जा सकती है। हठयोग प्रदीपिका में आदिनाथ को योग का प्रवर्तक बतलाया गया है श्री आदिनाथाय नमोऽस्तु तस्मै, यनोपदिष्टा हठयोग विद्या। विभ्राजते प्रोन्नतराजयोगभारोढुमिच्छोरधिरोहिणीव ॥ 'आदिनाथ' नाम जैन और शैव-दोनों परम्पराओं में प्रसिद्ध है। जैन परम्परा में आदिनाथ भगवान् ऋषभ का नाम है और शैव परम्परा में शिव का नाम है। आधुनिक विद्वानों का मानना है कि ऋषभ और शिव-दोनों एक ही व्यक्ति हैं। दो भिन्न-परम्पराओं में दो नामों से प्रतिष्ठित हैं। आचार्य शुभचन्द्र ने भी ज्ञानार्णव के प्रारम्भ में भगवान् ऋषभ की एक योगी के रूप में वंदना की है। महाभारत के अनुसार हिरण्यगर्भ से पुराना कोई योगवेत्ता नहीं है। सांख्य-योग परम्परा में हिरण्यगर्भ को सगुण ईश्वर के रूप में माना है। श्रीमद्भागवत में भी भगवान् ऋषभ को योगेश्वर कहा गया है।५ ऋषभ ने नानायोग चर्याओं का चरण किया था।६ संभवत: यही कारण है कि उनके ऋषभ, आदिनाथ, हिरण्यगर्भ और ब्रह्मा-ये नाम प्रचलित थे। ऋग्वेद के अनुसार हिरण्यगर्भ भूत-जगत् का एकमात्र स्वामी हैहिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । स दाधारपृथिवीं धामुतेमां कस्मै दैवाय हविषा विधेम ॥ फिर भी यह स्पष्ट नहीं होता कि वह परमात्मा है या देहधारी? क्योंकि * प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी-५
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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