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________________ जैन दर्शन और कबीर : एक तुलनात्मक अध्ययन ३१ जैनदर्शन कर्म (पुरुषार्थ) के अनुसार वर्ण-व्यवस्था को मानता है, न कि जन्म के अनुसार। वह सब मनुष्यों में समानता का प्रतिपादक है। उसका कहना है कि सबको अपना विकास करने का समान अधिकार है, कोई उच्च या नीच नहीं है तथा स्त्री और शूद्र को भी ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार है। जन्मगत जाति का मिथ्याभिमान और उसके कारण अन्य जातियों से पृथक रहने के विचार को जैन दर्शन ने दूषित ठहराया है। 'सूत्रकृतांग' जन्मपरक अभिमान की निन्दा करता है और उन आठ प्रकार के अभिमानों में इसकी गणना करता है, जिनके कारण मनुष्य पाप करता है । अब हम कबीर के विचारों पर दृष्टिपात कर लें। कबीर के समय में विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों का व्यापक प्रचार था । 'सार - सार को गहि रहे' कहने वाले संत कबीर स्वयं सारग्राही थे, इसलिए उनके दार्शनिक दृष्टिकोण को अनेकों मतों ने प्रभावित किया। इसीलिए आज तक भी अनेकों विद्वान् उनके दार्शनिक व्यक्तित्व के बारे में एकमत नहीं हो सके हैं। किसी ने उन्हें इस्लाम से प्रभावित माना, तो किसी ने सूफी मत से, तो किसी ने अद्वैत वेदान्त से, किसी ने द्वैताद्वैत अथवा विशिष्टाद्वैत से और किसी ने कबीर पर किसी भी पंथ का प्रभाव मानने से इनकार कर दिया। जबकि वस्तु स्थिति यह है कि कबीर सारग्राही तो थे ही, समन्वयात्मक दृष्टि सम्पन्न भी थे। उन पर किसी भी एक पंथ का पूर्ण प्रभाव नहीं था। उन्होंने सभी जगह सत्य का अन्वेषण किया, सार-सार को ग्रहण किया, थोथे को उड़ा दिया। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि कबीर प्रकारान्तर से अनेकान्तवाद के ही समर्थक थे। युक्तिपुरस्सर तत्त्वग्राही थे। इस समन्वयवादी प्रवृत्ति के परिप्रेक्ष्य में जब हम चिन्तन करते हैं, तो कबीर के कुछ जीवनमूल्यों / सिद्धान्तों का निर्धारण कर पाते हैं यथा- अनेकता का निवारण कर एक परम सत्य की स्थापना, अन्धविश्वास का नितान्त अभाव, रूढ़ियों की अस्वीकृति, जातिगत भेदभाव को अस्वीकार करते हुए भी कर्मवाद, पुनर्जन्म, नियतिवाद, पापपुण्य, स्वर्ग -: -नरक आदि में आस्था, जीवन के उत्थान के लिए ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, अहिंसा आदि पर विशेष बल देना आदि । ज्ञानी भक्त कबीर की दार्शनिक चेतना का यही रहस्य है। जैनदर्शन और कबीर की तुलना जैनदर्शन के समान षड्द्द्रव्य, नवतत्त्व आदि जीवन और जगत् से संबंधित कोई
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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